प्रतिज्ञा | Pratigya

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Pratigya by हरिनारायण मैनवाल - Harinarayan Mainval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{( হই ) इस प्रकार युग की आवश्यकता ने साहित्यकारों की लेखनी फे स्ख कोफेरदिथा। इन नारको से पाश्चात्य जीवनमे एकं नया संचार हुआ | इसका प्रमाण इन नाब्कों की सफलता है। जनता की नाख्य-रचि के उत्साह को एकांकी के विकास से असीम सहायता मिली है। न केवल इनका प्रचार रंग-मंच पर है, अपितु स्कूल ओर कालिनों में भी इन्होंने अपना प्रमुत्व प्राप्त कर लिया है । श्ङ्करेजी लेखको ने नायको को पुस्तकाकार कर्‌ लिया है, जिनका पठन-पाठन मे उपयोग दरदा ई । शो (8४४) गाल्नवर्दीं (७1४8०४४१) ओर यख (ए ९७१४8) श्रादि लेखकोने इस दिशा मे युग-पर्वतक काकामकियाईै)र्शोकाष्दी मैन श्राफ उर्टिनीः, दी डाक लेडों आफ दी सौनेट्स” और सॉज के 'राइडसे हू दी सी? उत्तम एकांकी नास्कों के उदाहरण हैं । हिन्दी - में एकांकी का प्रचलन अड्गरेजी के अनुकरण पर हुआ ह । पं० बद्रीनाथ मइ ने मनोरंजक प्रहसन लिखकर एकांकी का द्वार खोल दिया था} उनकी चुगीकी उम्मेदवारी” में विनोद की सुन्दर सामग्री प्रस्तुत है । प्रसाद? का (एक पुटः सपल एकांकी का ज्वलन्त उदाहरुण है | इसमें जीवन की विनोदपूर्ण सामग्री और काव्य की मनोहर झॉकी मिलती है | कुछ काल से पं० गोविन्दबल्लम पंत और सुदर्शनजी ने अनेक एकॉकी नाटक लिके हैं जिनका' समय-संनय पर मासिक पत्रों में प्रकाशन होता रहा है । इन नाझक्रों में उज्ज्वल ४ \




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