मानिनी गोपा | Manini Gopa

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Manini Gopa by हरिनारायण मैनवाल - Harinarayan Mainval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १५ “साथी--भूल से समझ बैठा था कि आज़ादी मिल गई है । विचार-स्वतन्त्रता और सत्य की बेड़ियाँ काटकर ग़रीबों की आवाज़ बृखन्द करने लगा । हड़तालें हुई; मिल ठप्प थी, रेलों के चक्‍के जाम हो गये ओर जनता कौ वृन्दं आवाज से आकाश फटने लगा । भवसरवादी सफ़ेदपोश घबरा उठे, उनकी कुसियाँ उलटने लगीं । और, मोटे पेट का पाती सूखने छगा । बस, फिर क्‍या था, अँग्रेंज़ों जैसा दमन-चक्र चला, विचार- स्वतन्त्रता का गला घोट दिया गया मौर सत्य के हाथों में हथकड़ियांँ और प॑रों में बेड़ियाँ डाल दी गई ।. . . .में एक भयंकर राजद्रोही ठ | 11 ताड़-पूड़ (ताड़-गुड़” (१६५०) प्रचार की चीज़ है, जिसमें ताड़-गूड़ की उपयोगिता, महत्त्व, छाभों को नाठकत्व प्रदान कर दिया गया है । इसका प्रधातल पात्र सम्पादक कहता है-- 'ताड़-गुड़-उद्योग 'अधिक भन्न उपजाओ आन्दोलन का सहायक है । गन्ने की काश्त पर ताड-गृड उद्योग का सीधा प्रभाव यह पड़ेगा कि किसान सेतो मेँ गन्ना बोन के




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