गुलाब और बुलबुल | Gulab Aur Bulbul

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Gulab Aur Bulbul by त्रिलोचन शास्त्री - Trilochan Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुख में भी परिचित मुखों को तुम ने पहचाना है क्या अपना ही सा उन का मन है यह कभी माना है क्या जिन की हम ने याद की जिन के लिए बेढे रहे, वे हमें भूलें तो भूलें इस में पछताना है कया हाथ ही हिलता न हो जब पाँव ही उठता न हो, इन की उन की बात से आना है कया जाना है क्या गाजकल क्या कुछ इधर मेरे हृदय को हो गया, चुप ही चुप है, अब उसे रोना है कया गाना है कया जब तुम्हदी से दूर हूँ तब मैं निकट किस के रहूं; होश जाने पर यहाँ खोना है क्या पाना है क्या हँस के तुम ने बयों कहां बोलो तुम्हें क्या चाहिए, तुम हो तो पाना है क्या और तुम को भी लाना है वया मुझ को दुख यदि है त्रिलोचन तो इसी का जान तु यदि स्वयं समझे न वे तो उन को समझाना है क्या गुलाब और बुलमुल / 17




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