अनुवाद कला कुछ विचार | Anubad Kala Kuch Vichar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ अनुवाद कला कुछ विचार हिन्दी में हुए । लक्ष्मीवारायण मिश्र का काये उल्लेखनीय है । चेखव और रोमोनोफ़ थाँ श्र गाल्सवर्दी प्रेमचन्द के भ्रनुवाद उल्लेखनीय हैं बैकेट झर गेद्रूं तक कई नाटककारों की रचनाएँ हिन्दी श्र झ्रन्य भारतीय भाषाओं में भ्रनूदित हुई हैं । कई तो .निरे स्टेज-एडाप्टेशन्स हैं कहीं-कहीं श्रनुवाद की सफलता स्टेज पर नहीं भ्राज्माई गई है । द्विजेन्द्रलाल राय के प्राय सभी नाटक बंगला से हिन्दी में अ्रनूदित हुए भर खेले भी गये मामा वरेरकर के कई नाटक अ्रनूदित हुए भर खेले नहीं गये । शझतः नाटकों के भ्रनुवाद की सफलता- भ्रसफलता केवल पाठ्य तक सीमित नहीं है । प्रभिनेयता भी झ्रावश्यक होती है । कालिदास के शाकुन्तल के कई अच्छे-बुरे अनुवाद हिन्दी-हिन्दुस्तानी में हैं। श्रौर कालिदास की मूल श्रात्मा जैसी राजा लक्ष्मणर्सिह के भ्रनुवाद में परिस्फुट हुई--द्यायद ब्रजभाषा की मधुरता भी उसका एक कारण हो-- वैसी अन्यत्र कस ही हप्टिगोचर हुई । यद्यपि उदयशंकर भट्ट श्र सागर निज़ामी के श्रनुवाद श्राकाशवाणी पर सफलता से खेले गये फिर भी संस्कृत नाटकों के उत्तम श्रभिनेय श्रनुवाद श्रब भी एक बड़ी श्रावस्यकता है । मैंने भारतीय भाषाओं में कालिदास के सफल श्रनुवाद यथा उमाशंकर जोशी का शाकुन्तल गुजराती पढ़े हैं। श्रौर वहाँ मूल से अधिक सपल्निकटता दिखाई दी । इंटरप्रिटेशन भी वहाँ बहुत भ्रच्छा है । आधुनिक कविता की भाँति आधुनिक नाटक के अनुवाद में बड़ी भारी कठि- नाई मूल सांस्कृतिक पीठिका के विशेषीकृत होने से पराई भाषा द्वारा वे सब बातें जो मूल में संकेत से सुई जाती हैं व्यक्त हो पाना है । बेकेट के वेटिंग फार गोड्डो का अनुवाद कैसे संभव है? टेनेसी विलियम्स के ग्लास मेनेजेरी का मराठी अनुवाद इसीलिये स्टेज पर सफल नहीं हो पाया । बंगाली में रूसी और फ्रेंच नाटकों के आधार पर नाटक लिखे गये कई एकांकियों के भी सफल अनुवाद लिखे और खेले गये हैं । मलयालम और कन्नड़ में भी ऐसा ही हुआ है । पर हिन्दी में आधुनिक यूरोपीय नाटकों के भ्रनुवाद कम हैं । शायद इसका कारण यह भी है कि नाटक के अनुवाद के लिये विशिष्ट प्रकार की प्रतिभा की श्रावदय- कता होती है। जैसे काव्य का अनुवाद सफल कवि ही अच्छी तरह कर सकता है उत्तम नाटककार ही नाट्यानुवाद में यशस्वी हो सकता है। हिन्दी के नाटककार




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