बाल्मीकी मुनि का जीवनचरित्र | Balmic Muni Ka Jeevan Charatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ का जीवन चूत्तान्त १५. न कोई समुद्र है न प्रलेय है और न चह कमलपत्र और न उसपर बेठा हुआ बालमुकुन्द दी है । महादेव आए और उन्होंने ऋषि को विकल देख कर पूछा--कहो कमा हाल है क्या २ देखा ? ऋषि बोठे--मुझे अपनी भूल मालूम हो गई । मैंने अहम की माया का स्वरूप देख छिया । और क्या देखा है ? महाप्रठय के अन्दर बाल- मुझन्द के दर्शन हैं। बालमुझुन्द के रूप में अलंकार से ब्तलाया गया है कि मस्तक हाथ पॉव और पेट सब एक ही स्थान में मिले है । न कोई नीच है और न कोई उच्च न कोई छोटा है और न कोई बड़ा ब्राह्मण क्षत्रिय/ वेदय और झूद्र सब उसी भगवान के मस्तक पेट हाथ और पेर के समान एक ही स्थान में मिठे हुए हैं । इसे देख बद्दी सकता है जिसे देखने के लिये परमात्मा ने अँखि दी है | समाज की आत्मा मनुष्य का शरीर क्या है? मैं क्या हूं? क्या मैं हाथ हूं? हाथ फट जाता है परन्तु मैं वैसा ही रहता हूं। कया मे पांव हूं? पांव कट जाता है मैं वैसा ही रहता हूं । तो क्‍या में आंखें हूं ? पर उनके बिना भी मैं ससा थी रदता हूं । तब व्यक्ति क्या है ? इस मेरे शरीर




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