नागरीप्रचारिणी पत्रिका | Nagri Pracharini Patrika

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Nagri Pracharini Patrika  by कृष्णानंद - Krishnanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मंघ्य प्रदेश का इतिहास है के बंश में सौ वर्ष तक राष्य स्थिर रहा। यह बंश भी बड़ा समृद्धि- शाोली था। नंद का पुत्र महापद्य एकराटू एकच्छंत्र कहलाता था परंतु झभी तक कोई प्रमाथ ऐसा नहीं मिला जिससे यह सिद्ध हे कि शिशुनाग या नंदवंशियों का अधिकार मध्य प्रदेश के किसी भाग में था या यहाँ के स्थानीय राजा उनका झाधिपत्य मानते थे । जब नदवंश का पतन प्रसिद्ध चाशक्य आह्मण की नीति द्वारा हु तब मौर्यवंशी पंद्रगुप्त राजा सिंहासन पर धारूढ़ हुआ । बोद्ध भंथों के अल्लुसार चंद्रगुप्त शाक्यवंशी गौतम बुद्ध का बंशज था । उसका पिता हिमालय पर्वत के ऊपर एक छोटे से राज्य का अधिक्रारी था । उसके राज्य में मेर बहुत थे इसलिये उसके बंश का नाम मौर्य कहलाया। कोई कोई कहते हैं कि उस राजा की राजधानी मारिय नगर में थी इसलिये वंश का मास सोये चल निकला । झन्य कहते हैं कि चंद्रगुप्त नंदबंशी झंतिम राजा महानंद की सुरा नामक नाइन दासी के पेट का लड़का था इसलिये मोये कहलाया परंतु स्पष्ट: यह युक्तियुक्त नहों जान पड़ता, क्योंकि इतना बढ़ा प्रतापी राजा अपने बंश का नाम होनतासूचक क्यों चलने देता । यह केवल ईंष्या का फल है, क्योंकि इस बंश ने बौद्ध घर्म का विशेष समधेन किया । पहाड़ी राजयुवक चंद्रगुप्त को सिकंदर की भारत पर चढ़ाई भर अपने देश को लौटते समय उसकी सत्यु ने ऐसा प्रसंग उपस्थित किया जिसके कारण वह भारतबष का एक महाप्रतापी राज्ञा है! गया । सिकंदर ने जिन राजाझों को हरा दिया था उनको संतेष बसे हो सकता था ? वे झार उनकी प्रज्ञा सभी विदेशी शासन से मुक्त दाना चाहते थे | अवसर मिलने पर बलवा हो गया । चंद्रगुप्त बलवाइयों का मुखिया बन बैठा । पंजाब की सीमा पर रहनेवाली लड़ाकू जातियों से मेल कर उसने एक बड़ी भारी सेना प्रस्तुत की ध्रार यूनानी दल से लड़ाई लेकर झंझर उसे हराकर पंजाब पर झपना स्वव्व जमा लिया । उस समय मगध देश बड़ा ससद्धिशाली था । चंद्रगुप्त ने अपनी दृष्टि उस झोर फेरी झार चाणक्य की सदायता से षड़्यंत्र रचकर महानंद मौय॑बंश




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