संक्षिप्त हिन्दी शब्दसागर | Shankshipt Hindi Shabdasagar

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Shankshipt Hindi Shabdasagar by कृष्णानंद - Krishnanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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আঁনিযাহী ११ ऋपियारी--सब्ञा-खी? [हिं० अंधेरी ] १ वि० प्रकाशरहित | बिना उजेले की। अपर । २ उपद्रवी धोढ़ों, जैते-श्रेधेरी रात । अधथकार । शिकारी पक्षियों श्र चीतों की आँख पर सुहा०--भंपेरी कोठरी 5 (१) पेट । “बांधी जानेवाली पट्टो । 7. गमं । कोख । (२) घ्र मेद्‌ । रहस्य । ऑँधियात्वी--पशा स्री० दे० “अँधियारी” । अंधौटी--सशा জীৎ [বণ সঘ+দত সাত थिरा पु० [ संण श्रधकार] १ अथवटी, अधौदी ] गैल या घोड़े की श्रास अन्याय ! भ्रत्याचारा जुल्म । २ उपद्रव। बद करने का उक्कन या परदा । गढ़वड़ । कुप्रबंध। अधाधुध | धौंगाधींगी । अरध्यार(91--पज्षा पुं० दे० “अंधेरा 1 अपेरखाता--सप्ा पुं० [हिं० अधेर-+-खाता] भ्रैध्यारीपरतं--सज्षा ली० दे० “अँधेरी” । १ दिसाव-कितान अथवा व्यव्हार में श्रध्-पष्ठा पं [सं०] १ बदेलिया। अत्यधिक गढ़बढ़ी । व्यतिक्रम । २. अन्यथा- व्याध। शिकारी । २ वैदेह पिता भौर चार। ३ अन्याय । अविचार । ४ कुप्रबंध। कारावर मात। से उत्पन्न नोच ज्गत्ति । अधेरना(५--क्रि०ण स० [ हि धपेर ] भंप्ररृत्य--संज्ा पु [ सं०] मगध देश का श्रषकारमय करना 1 एक प्राचीन राजवश 1 ऑँधेरा-सजा पुं० [सं० भंपकार, प्रा० भंब--सशा स्त्री० दे? “अवा?। शधयार ] [ छ्ली० अँपेरी ] १. भधकार । , सज्ञा पुं० [ सं० आम्र ] ञ्राम का पेढ़ । तम | प्रकाश का अमाव । उजाले का उलटा। भवेक-सशा पुं० [स० ] १ श्राँस। नेत्र । २ घुँधलापन | धुंध । २ तबा 1१ पिता। यौ०--अंधेरा युप > ऐसा अँधेरा जिसमें भवेर--सशा पुं० (स०] १, श्राकाश। कुछ दिखाई न दे। घोर भधकार । श्रसिमान। २ क्ख | कपड़ा | पट | ३१ क्षियो ३ छाया । परदाई । ४, उदासी। के पदनने की एक प्रकार की एकरगौ उत्साइ-दीनता । किनारेदार धोती। ४ कपास। ५ एक सुगधित वस्तु जो हिल म्ली की भतद्ियों में जमी हुई मिलती है। ६, एक श्व। ७ अम्रक धातु | अवरक । ८ राजपूताने का एक पुराना नगर । ६, अग्ृत । १० प्राचीन यर्थो के श्नु सार उत्तर-भारत का एक देश | सशा पुं० [ स० अम्न | वादल । मेत्र । अंबरठडबर--सश्वा पुं० [स० अवर-- आ।टस्वर ] सूर्यास्त के समय कौ लाली । अंबरबारी--सज्ञा क्ली० [ सं०] एक भादी जिसकी जढ़ और लकड़ी से रसकत या रसौत निकलता है। चित्रा । दारुहल्दी । अबरबेलि--पशा सखी ° [ स० श्रवर~-वेहि ] श्राकाशेल 1 झबराई--पज्ञा खी० [ स० आम ८ आम -- राजी >प/क्त ] आम का वगीचा। आम = की वारौ 1 त खी [नेरा ] ऊक पहली উহা, বারতা पुं० [स० आम्र- क राजि या श्राप्नाराम ] धामोँंकी वगिया) श्रधेरी-सश्ा ली [ ° श्रषेरा] १ शैवराव्प--सका पुं० दे० “अँबराई” | अधकार। तम। श्रकाशा का अमाव। ক্মনহার--নহা पु० [सं०] १ वह स्थान २ श्रेंधेरी रात] काली रात। ३ आधी । जहाँ आकाश पृथ्वी से मिला हुआ दिखाई अंधड़ | ४ घोड़ों या बैलों की आँख पर देता है 1२ कपड़े का छोर 1 डालने का परदा | ष्मवरी--पक्षा, वि० [ स० अम्बर ] जिसमें मुहा०--अंधेरी डालना या देना= अबर ( सुगधित द्रव्य ) पढ़ा या मिला हो । (१) भाँखें मूँदकर दुर्गति कूना। (२) आँख अंबरीप--सज्ा पु० [ स०] श्रयोध्या का में घूल टालना । धोखा देना । एक सूर्यंवशी परम वैष्णव राजा । নিও श्रषकारमय । प्रकाशरहित । मुहा०--अंधेरे घर का उजाला+(१) श्कलीता बेटा | (२) भर्त्यत प्रिय । (३) सुलज्ञण । शुभ लक्षणवाला। कुलदीपक। वश कौ मर्याद्रा बढानेवाला। (४) घर की शोभा । अंधेरा पाख या प्ठ = ऊष्णं पक्त! मदी । मह अपेरे या अंधेरे मुँह = वड तक्के । बढ़े समेरे । अधेरा-उजाला--सज्ञा पुं० [ हिं० अँधेरा +- उजाला ] कागज मोढ़कर बनाया छुश्ा लडकों का एक खिलौना । श्रधेरिया--संशा खी° [ हि अंधेरी+-झ्या (प्रत्य० ) ]१ अ्रधकार। अपेरा । २ श्रेघेरी रात | काती रात 1 ३ श्रेंपेरा पक्ष । प्रंपेरा पाख । झविरती अंबरोक--सशा पुं० [ सं० ] देवता । अंबल्य--पश्षा पुं० १ दे० “भ्रम्ल” | २, दे० #अमल?? 4 1 झंबह--सशा पुं० [स० ] [ ल्ी° अवष्ठा ] १ पंजाब के मध्य माग का पुराना नाम। २ अवष्ठ देश में बसनेवाला मनुष्य । ३, ब्राह्मण पुरुष भौर वैश्य स्री से उत्पन्न एक जाति। (स्मृति )। ४ महावत | हाथी- वान | फीलवान | हा अंबष्टा--पञा स्ती० [स० | १. अ्रवष्ठ की स्री।२ एक लता । पाढा । बाक्षणी लता । ৬ हा | अंया--संशा क््षी० [स०] १ माता। जननी । माँ। श्रम्मा | २, पार्वती । गौरी । दुर्गा । ३ अवष्ठा। पाढ़ा। ४ 'काशी के राजा इद्रयुम्न की उन तीन कन्याओं में सबसे वदी निन्द भीष्म पितामह अपने भाई विचित्रवीयं के लिये हरण कर लाए थे । सज्ञा पु० दे० “आम!” | अबाढ़ा--सशा पु० दे० “आड़? । अंबापोखी--सशा खीर [स० अभ्र पौली = रोटी ] भरमावट । श्रमरस । अंबार--सज्ञा पुं० [ फा० ] ठेर । समह । अंयारी--सज्ञा सखी? [अ० अमारी ] १ हाथी की पीठ पर रखने का दौदा जिसके ऊपर एक छज्जेंदार मडप होता है। २ छज्जा | अंबालिका--सज्षा खी० [ सं० ] १ माता | मा। २ शअ्रष्ठा लता पाढ़ा । ३ काशी के राजा इंद्रयुम्न की उन तीन कन्याक्रों में से सबसे छोटी जिन्हें भीष्म अपने भाई विचित्र- वीर्य के लिये हर लाए थे । अबिका--सज्ञा सखी? [स० ] १ दुर्गा। पार्वती । सगवती । देवी । २ माता । माँ । १ जैनों की एक देवी। ४. कुटकी का पेढ़। ५ शभ्रंव्ठा लता। पाढ़ा । ६ काशी के राजा इंद्रधुम्न की उन तीन कन्याओं में मेकली जिन्हें भीष्म अपने भाई विचित्रवीय के लिये हर लाए थे । अबिकेय---सज्ञा पु० [ स०] १ श्रविका के पुत्र। २ गणेश। ३ कार्तिकेय। ४. घृतराष्ट्र अविया--सज्ञा खी० [ सं० आम, प्रा० अंब] आम का छोटा कच्चा फल जिसमें जाली न पडी टो 1 रिकोरा कैरी । अबिरती[--पशा खो० [ सं० अमृत ? | तर का एक पुराना वाजा । श्रगृत। श्रत कुटली । उ०-बाज पंविरती श्रति गहगही। --पदमावत ।




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