जैन सिद्धान्त भास्कर | Jain Sidhant Bhaskar

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Jain Sidhant Bhaskar by ज्योति प्रसाद जैन - Jyoti Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किरण १] “जोधपुर संप्रदालय की अज्ञात कुछ जेन धातु मूर्ठिया” दै्‌ (२) संबतू १५०१ की मूर्ति!-- ऊँचाई ६ इंच तथा चौड़ाई लगभग २३ इंच । श्राकार में यद प्रतिमा पहली से छोटी है । यहाँ सपंफण श्रविद्यमान है । शेष भाव पूर्ववत्‌ उत्कीण है । इस मूर्ति में देवलाज्डन शविद्यमान दे परन्तु लेख' द्वारा यद सष्ट दे कि यह मूर्ति “श्रेयांसनाथ” की है यथाः-- “संबत्‌ १४०९ व माघवदि ६ बुधे उपकेशज्ञाती * आ'” “'णागगोत्रे सा० कान्द पु० बील्दाभायों देवी ही आत्मश्रे यसे श्रीक्ष यांस बिंबं कारितं श्री उकेशग० ककुदाचायें संताने प्रतिष्ठित श्रीकक्कसूरिमिः । इस लेख द्वारा उपकेशगच्छीय श्री ककुदाचायं कककसूरि का मी बोध होता है। प्रथमलेख में भी देवसूरि जी का नाम तो उपलब्ध हुश्रा है परन्तु उनके गच्छु का नहीं । (३). संब्त्‌ १५०४ की मूर्तिः-- ऊँचाई ७है इन तथा चौड़ाई लगभग ५३ इंच । यहाँ पर श्रात्नदेव के ऊपर सातफणोंवाले सपे का बितान विद्यमान है । श्रासन के नीचे तथा पूर्व वर्णित सिंहों के मध्य में स्पलान्द्धन भी विद्यमान है । “श्रो पाश्वंनाथ' की यद मूर्ति सुन्दर है। इसके श्रतिरिक्त जिन भगवान्‌ के ऊपर दोनों श्रोर तीथडूर ध्यानस्थमुद्रा में प्रदर्शित हैं तथा विद्याघरों का श्रभाव है। इनके भो ऊपर गज प्रदर्शित हैं । मूर्ति के प्रष्ठ भाग पर उत्कीण लेख* इस प्रकार है:-- “संबत्‌ू १५०४ वर्ष बेशाख्र स० ७ दिन श्री उकेशबंशे स।० डोढापुत्र सा० नाथ श्रावकेश तथा स० दूदा स० (स्यायरा) सहितेन सुपुण्या्थ' श्री पारबंजिनिंबं कारित॑ । श्री खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरिमिः । शुभमस्तु । प्रस्तुत लेख द्वारा खरतरगच्छीय श्री जिनभद्रसूरि का भी उल्लेख हुश्रा है । यहाँ पर पारवनाथ की उक्त मूर्ति पुर्याज॑न हेतु बनायी गयी । इससे पूर्व की, श्रर्थात्‌ श्रेयांस प्रतिमा, तो श्रात्मकल्याण देतु बनायी गयी थी । (४) संबत १५०६ की मूर्ति :£-- ऊँचाई ७ इंच तथा चौड़ाई लगमग ५ इंच | यहाँ सर्पवितान श्रविद्यमान है । यहाँ नीचे जिनदेव लाडडन तो उत्कीणा है परन्तु श्रसष्ट है । लेख* द्वारा यद ज्ञात होत! है कि मूर्ति “श्री सुमतिनाथ जी” की दै:-- १. तुलना हेतु द्रष्डब्य, वही, ० श४, लेख संख्या २४४; वही, भाग रे, प० ९३७, लेख संख्या ३६३३ । २. वर्तमान झोसियाँ, जोधपुर से ३६ मील दूर । इस स्थान के अन्य नाम उककेश, ऊकेश”** इत्यादि भी उपलब्ध हैं | ३. तुलना हेतु द्रष्टब्य, वद्दी, भाग १, प० १०५, लेख संख्या ७३१ ४. तुलना हेतु द्रष्टब्य, वढ़ी, साग १, ए० १७९; लेख संख्या




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