मानव शरीर दीपिका | Manav Sareer Dipika

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Book Image : मानव शरीर दीपिका  - Manav Sareer Dipika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) प्रत्येक शारीरिक कर्म में कुछ न कुछ रासायनिक क्रिया होती है । हमारे चलने-फिरनें बातचीत करने, यहाँ तक कि सोने के समय भी दारीर में ये क्रियायें होती रहती हैं । इन क्रियाश्नों में दारीर के श्रवयवों की ट्ट-फूट होती है । कुछ श्रवश्य फिर नये सिरे से बनते हैं। पाचन क्रिया सदा होती रहती है जिसमें रासायनिक क्रियाश्रों की एक लम्बी श्यंखला घटित होती है । इस श्यंखला के कहीं पर विच्छिन्न हो जानें से इन जीवविषों की उत्पत्ति होती है । यकृत इन विषों का नाश करता है श्रौर वृक्क (रत0८४) इनको रक्त से पृथक्‌ करके शरीर से निकालता है । त्वचा, फुफ्फुस तथा श्रान्त्र भी इन विषों को निकालने का काम करते हैं। जब किन्हीं कारणों से इस विषत्याग की क्रिया में गड़बड़ी हो जाती है, विषों का पुर्ण त्याग नहीं हो पाता तो शरीर में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। मल द्वारा भी ये विष दारीर से निकलते रहते हैं । दरीर के किसी भी भ्रंग की क्रिया के कम या अधिक हो जाने का भी फल रोगो- त्पंत्ति होती है । मधुमेह (90665 005) रोग भ्र्याशय ग्रन्थि के एक सूक्ष्म अवयव जिसको लेंगरहैंस की द्वीपिकायें (51665 0 1.20 2८709053) कहते हूँ उनकी अकमंण्यता का फल होता है । भ्रवट्का ग्रन्थि (ए0फ़णत (घ06) की अतिक्रिया से नेंत्रोत्सेंघी गलगंड (छ%0णु0018प्प्तं८ 00७) हो जाता है जिसमें नेत्र बाहर को निकले हुए से दीखते हैं श्र हृदय की धड़कन बढ़ जाती है । इसी प्रकार भ्राह्वार के भ्रपर्याप्त या भ्रनुपयुक्त होने से, उसके श्रवयवों की त्रुटि से चुटिजन्य या हीनताजन्य (0 ४घंलाट्प्र ए1ं568568) रोग उत्पन्न हो जाते हैं। बेरी- बेरी, स्कर्वी, रिकेट्स इसी प्रकार के रोग हैं। कुछ रोग पैतुक (छटा०७ठीधाफ) अथवा जन्मजात (0०9४८ए६91) होते हैं । कुछ दशायें जन्मजात भी होती हैं । कितने ही बच्चे श्रपंग (00167) जन्मते हैं । कुछ का हुदय ही पूर्ण विकसित नहीं होता । हृदय की रचना में त्रुटि रह जाने से रुघिर का संचार ठीक प्रकार से नहीं हो पाता । ऐसे बच्चों का जीवन शीघ्र ही समाप्त हो जाता है । कुछ जो बच जाते हैं वें जब तक जीते हैं श्रपंग जीवन व्यतीत करते हैं। परिश्रम के योग्य कभी नहीं होते । विधि की यह विडम्बना अ्रपरिहारय॑ है । .. झागामी पृष्ठों में हम शरीर के प्रत्येक तन्त्र की रचना भ्रौर उसकी क्रिया की संक्षिप्त विवेचना करने के परचात्‌ उसको स्वस्थ रखने भ्रर्थात्‌ दक्षता के साथ उससे कर्म करवाने के उपायों का भी संक्षेप रूप से विचार करेंगे । इस ज्ञान को प्राप्त करने पर ही हम यह जान सकेंगे कि हमारी दिनचर्या किस प्रकार की हो, भ्राहार कसा हो तथा आर क्या आयोजन किये जायें जिनसे शरीर के सब तन्त्र अपना-श्रपना काम दक्षता से करते रहें तथा किस प्रकार हम शरीर की रोगों से रक्षा कर सकें ।




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