सुफेद शैतान भाग - 3,4 | Sufed Shaitan Bhag - 3,4

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Sufed Shaitan Bhag - 3,4 by दुर्गाप्रसाद खत्री - Durgaprasad Khatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न श् तीसरा भाग वोट तो ऐसी गायव हुई मानों कोई उसे उठा ही ले गया हो । वाकी की सब नावें और उनके सवार जगह जगह ढू ढने आवाजें देने और तलाज करने लगे पर काउण्ट की वोट का कहीं भी पता न लगा । जव बहुत देर हुई और आशंका वंढी तो पलिस की और वाद मे जंगी जहाजों की वोटें मंगाई गई जिन्होंने सचेलाइट की मदद से तलाश करना शरू किया मगर सब व्यर्थ हुआ, काउण्ट शवर ओर उनके मित्रों अफसरी तथा साथियों समेत उनकी सोटरवोट ऐसा गायव हो गई मानों जल में इूव गई हो । यही आशंका अधिकांग को हुई भी, मगर जब दुसरे दिन गोताखोरों और जालों के जरिये कोसों तक की नदी छान डाली गई ओर तव भी न तो वोट और न उसके किसी आरोही का हो कुछ पता लगा तव लोगों को चिन्ता हुई ओर किसी दूसरी वात का खयाल आने लगा । कई लोग दवी जुवान से कहने लगे--कही यह पड़य त्रकारियों की कार्रवाई तो नहीं है । दो चार दिन खोज दू. ढ॒ तलाशी और परेशानी मे वीते, शासकवरग घबरा गया और एक कोई अनजान सी आशंका अफसरों के दिलों को दवाने लगी जव कि गन्नू का दूसरा वार हुआ । घोर रात्रि मे, काले आकाश से, फ्रास की नेटिव और यूरोपियन सेना पर, किलों पर, उनके फौजी संग्र हा- लयो पर, और रसदघरो पर व्यपात होने लगा । जान्त अंधेरे आसमान में, बहुत दूर पर, यकायक कहीं एक विजली सी चमकती, एक छोटा सा पुच्छल तारा सा आकाण मे उठता नजर पड़ता जो वडी तेजी से वढता और अग्निपु ज फेंकता हुआ किसी फौजी स्थान की तरफ भपटता, एक बड़े जोर का भयानक दन्नाटा होता, और हजारों लुक आकाज से चिनगारी सी छटकाते और फैलाते हुए जमीन की तरफ गिरते । लुक कुछ इस तरह के होते थे कि इनकी आंच इनके जमीन पर गिर जाने के वाद भी किसी तरह वुभती नही थी वल्कि जलती ही रहती थी और आस पास की चीजो को मस्मसात करके ही दम लेती थी । इसमें का कोई लक जहा कही भी क़िसी वारूदखाने, मेगजीन, स्टोर, गुदाम,. या तंदू पर ,गिरा कि कट वहां आग




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