देव मूर्तियाँ | Dev Moortiaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 प्राचीन भारतीय देव-मूर्तियाँ भक्ति-आन्दालन का प्रभाव जेन धम पर भी पडा | मथुरा मे ककाली टीले की खुदाई से वहाँ शुगकालीन जैन स्तूप के अवशेष मिले हें जिनमे उस युग की जैन कला-फलक भी है। बाद मे वही पर कुषाणकालीन स्तूप का भी निमाण किया गया था। मथुरा से कई पत्थर के चौकोर उत्कीर्ण फलक मिले है जिन पर मागलिक चिह्न उकेरे हुए है। जैन धर्म मे अष्टमागलिक चिहनो का बडा महत्त्व था। इनमे स्वस्तिक श्रीवत्स नन्दिपद कलश पुष्पदाम वर्द्धमान मीन-मिथुन वैजयन्ती आदि मुख्य थे। किसी-किसी फलक पर बीचो-बीच पदमासन मे बैठे तीथकर की प्रतिमा भी बनी है। इन फलको को आयागपटट अर्थात पूजापटट कहा जाता है। ये आयागपटट जैन पूजा के प्रथम सोपान कहे जा सकते है। बाद मे जैन तीर्थकरो की स्वतत्र मूर्तियाँ गढी जाने लगी थी। जैन तीर्थकरो की प्रतिमाएँ सर्वप्रथम मथुरा मे ही गढी गई थी। मथुरा मे पार्श्वनाथ नेमिनाथ तथा महावीर के साथ-साथ सैकडो जैन तीर्थकर- प्रतिमाएँ स्थानक (कायोत्सर्ग) तथा आसनस्थ (पद्मासन) मुद्रा मे पाई जा चुकी है। इस युग मे मथुरा मे ऑकी गई जैन तीर्थकरो की मूर्तियाँ तीन कोटि की थी- (1) पालथी मारकर ध्यानमुद्रा मे बेठी मूर्तियों (2) कायोत्सर्ग मुद्रा मे खडी मूर्तियों (3) एक ही पत्थर के फलक पर पीठ से पीठ जोडकर खडी चार मुूर्तियाँ | कुषाणकाल से तीर्थकरो के वक्ष पर श्रीवत्स का लाक्षन उकेरने की परम्परा भी सबसे पहले मथुरा के कलाकारों ने ही डाली | इस लाछन से जैन तथा बौद्ध मूर्तियों मे भेद करना सरल हो गया था। जैन धर्म की प्राय सभी खडी प्रतिमाएँ नग्न है। बौद्ध धर्म भक्ति-आन्दोलन से अछूता न रह सका। सर्वास्तिवादी या हीनयान विचारधारा मे बुद्ध की मानव-मूर्ति बनाना वर्जित था। लेकिन कुषाणकाल मे महायानी बौद्ध-भक्तो ने विकासवादी विचारों से प्रेरित होकर बुद्ध की मानवमूर्ति बनवा ली | उनका तर्क था कि जब हमारे सामने बुद्ध है ही नहीं तब फिर दीक्षा मे 'बुद्ध शरण गच्छामि कहने का क्या अर्थ है? बुद्ध सामने हो तभी हम उनकी शरण मे जा सकते है। वस्तुत ब्राह्मण धर्मावलम्बी और जैन धर्मावलम्बी भक्तों द्वारा अपने-अपने इष्टदेवो की सुन्दर-सुन्दर मूर्तियों देखने के बाद बौद्ध अनुयायी भी अपने को न रोक सके ये लोग महासाघिक अथवा महायानी कहलाए और इन्होने पूर्व परम्परा वाले सर्वास्तिवादी बौद्धो को हीनयानी बताया । कुषाण सम्राट कनिष्क महायानी बौद्ध विचारधारा का प्रबल समर्थक था | उसके प्रशासनकाल मे मथुरा से लेकर पश्चिमोत्तर भारत के गधार क्षेत्र तक महायानी बौद्ध विचारधारा का प्रचार हुआ तथा अनेक स्तूप और बुद्ध-बोधिसत्त्व की विशाल प्रतिमाएँ बनाई गई । कुषाणकालीन मथुरा कला की विशेषताएँ 1. जैन तीर्थकर बुद्ध बोधिसत्त्व तथा कुछ ब्राहमण धर्म के देवी देवताओ की मूर्तियो का पहली बार अकन सफेद चित्तीदार लाल बलुए पत्थर का प्रयोग झीने सलवटोदार वस्त्रो का प्रयोग आभूषणो मे हल्कापन मानव आकृतियो मे सुडौलता कुछ मूर्तियो पर गाधार कला का प्रभाव बुद्ध तथा अन्य देव-मूर्तियो मे उनके अगो की सुन्दरता के स्थान पर मुख की भाव-भगिमाओ का स्पष्ट अकन 8. अनेक देवी-देवताओ का पहली बार अकन जैसे विष्णु और उनके कुछ अवतार दुर्गा महिषमर्दिनी आदि। गधार क्षेत्र मे कुषाण सम्राट कनिष्क के प्रयासों से बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। इसके 4 09 फा + (9 १3




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