अध्यात्म - पदावली | Adhyatm Padawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand) डक चित ध्यावत, वांछित पावत, आवत मंगल, बिघन टरै; *
मोहनि धूरू परी माथे चिर, सिर नावत तत्काल झरे। .
जिनराज चरन मन ! मत बिसरे ॥”'
चिरकालसे हमारे माथेपर जो मोहनीय कर्मकी धूल पड़ी हुई है,
भगवानके चरणोंके आगे सिर झुकाते ही वह धूल झड़ जायेगी । हे मन !
जिनेन्द्र भगवानूके चरणोंका ध्यान मत भूल । मत भूल, क्योंकि '
“को जाने किहि बार काल की धार अचानक आन परे,
जिनराज चरन मन ! सत बिसरे ॥”'
कितने सीधे दशब्दोंमें कितनी गहरी बात, किस प्रभावपूर्ण ढंगसे कह
दी हैत कितना प्रसाद है इन पंक्तियोंमें । कौन जानता है कि कालकी
दुधारी किस समय अचानक ही गरदतपर आ गिरे ।
भविति-भावनाके अतिरिक्त प्रस्तुत पदावलीका प्राय: तीन चौथाई भाग
“ऐसे आध्यात्मिक पदोंका है जिसमें व्यक्तिको आत्मज्ञान, विवेक और ._
वीतराग-अवस्था प्राप्त करनेको प्रेरित किया गया है । यह उपदेश अवश्य
है, पर ऐसा उपदेश जिसके पीछे कवि योंका अनुभूत जीवन-दर्शन है । इन
पदोंकी प्रेरणाका प्रभाव इस बातमें है कि इनके कवि अडिंग विश्वास और
श्रद्धासे स्वयं प्रेरित हैं । किस-किस ढंगसे, किन-किन तरकोंसे, कित-कित
सम्बन्धोंसे - दुलारकर, समझाकर, 'छताड़कर, लानत भेजकर, सब तरह-
से - वे श्रोताके हृदयमें अध्यात्म-तत््व जगाना चाहते हैं । कितनी करुणा
है इन कवियोंके उरमें । कैसी मिश्री-सी मीठी और कैसी तीर-सी सीधी हैं
इनकी बातें । और आत्मीयता इतनी कि जैसे सारा पद आपके छिए, केवछ
आपके लिए, रचा गया हो ।
अनेक पदोंकी प्रथम पंक्तिमें ही यह मनुहार और दुलार देखिए :
“मान ले या सिख मेरी ।”
“छाॉड़ि दे या बुधि मोरी।”
६ अध्यात्म-पदावली
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