अनेकान्त | Anekant

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Anekant by जुगलकिशोर मुख़्तार - Jugalkishaor Mukhtar

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ठ अक्रमकी व्यवस्था कैसे बन सकती है ? अर्थात द्रव्यक॑ अभावमं जिसप्रकार गुगपर्यायको और वृन्तक अभावमें शीशींम, जामन, नीम आम्रा दकी का व्यवस्था नहीं बन सकती उसी प्रकार अनेकान्त के अभावमें क्रम-अक्रमकी भी त्यवस्था नहीं बन सकती । क्रम-अक्रमकी व्यवस्था न बननसे अथ क्रिया- का निपंध हा जाता है; क्यों,क अथक्रियाकी क्रम- अक्रमके साथ व्याप्रि है । श्र अथक्रियाके भाव में कमांदिक नहीं बन सकते--कमीदिककी अथ क्रिया के साथ व्याप्नि है । जब शुभ-अशुभकमम ही नहीं बन सकते तब उनका फल सुख-दुग्व, फलभागका क्षेत्र जन्म-जन्मान्तर (लाक-परलाक) और कमोंसे बैँधन तथा छूटनकी बात तो कैसे बन सकती है ? सारांश यह कि अनकान्तके श्माश्रय बिना ये सब शुभाठगुभ कमोदिक निराश्रित होजाते हैं, और इसलिये सबथा नित्यादि एकान्त वादियोंके मतमें इनकी काई टीक व्यवस्था नहीं बन सकती । वे यदि इन्हें मानते हैं तौर तपश्थरणादि अनुपान-द्वारा सत्क्मोका झ्र्जन करके उनका सत्फल लेना चाहते हैं अथवा कर्मों से कनननणणणलकण ? अनकान्त ही [ वप मुक्त हाना चाहने हैं ता वे श्रपन इस इष्रकों अनकान्त का विराध करके बाधा पहुँचाने हैं; और इस तरह भी अपनको स्व-पर-वेरी सिद्ध करते हैं । वम्तुत: अनकारत, भाव-झभाव, नित्य-अनित्य; मेद-अभद आदि एकार्तनयोंकें विराधका सिटाकर, वस्तुतत्त्वकी सम्यग्वम्था करने वाला है; इमसीसे लाक- व्यवहारका सम्यक प्रवतक है--बिना 'अनकान्तका आश्रय लिय लॉकका व्यवहार ठीक बनता ही नहीं; त्ौर न परम्परका बेग्-विरोध ही मिट सकता है | इसीलिय अनेकान्तकों पर मागमका घीज '्यौर लोक का द्धितीय गुरू कहा गया है--वह सबोंके लिये सन्मार्ग प्रदशक है के । जैनी नीतिका भी वही मूला- धार है। जा लोग अनकान्तका आश्रय लेते हैं वे कभी स्व-पर-वेरी नहीं होते, उनसे पाप नहीं बनते, उन्हें आापदाएँ नहीं सताती. और वे लाकमे सदा ही उन्नत, उदार तथा जयशील बन रहते हैं । वीरसवामन्दिर, सरसावा, ता० ५११ ९४१ 8 नॉंति-विरोध-ध्वंसी लोकव्यवहारवर्तक: सम्यक । परमागमम्य बीजें भूवने कगुरू जयत्यनेक्रान्त ॥। सावरयकता का भ् थ्त ५ ०७ ही न वीरसेवामन्दिरको 'जनलसरणवली' के हिन्दीसार तथा अनुवाद श्रोर प्रेसकापी आदि कार्यो के लिये दो- एक ऐसे विद्वानोकी शीघ्र आवश्यकता है जो सेवाभावी हों और अपने कायंको मुस्तेदी तथा प्रामाणिकताके साथ ति शा निभा हर ७ करने वाले हों । वेतन योग्यतानुसार दीजाण्गी । जो सज्जन श्ाना चाहें बे श्रपनी रोग्यता श्रोर क़ृतकाय के परिचयादि- सहित नीचे लिखे पते पर शीघ्र पश्रब्यवहार करें, श्रोर साथ ही यह स्पष्ट लिखनेकी क़पा करें कि वे कमसे कम किस बेतन पर श्रासकें गे, जिससे चुनावमें सुविधा रहे और अधिक पर्म्यवहारकी नौबत न आणए। ज़ुगलकिशोर मुख्तार अधिप्राता 'वीरसवार्मा' दर ' सरसावा जि८ सहारनपुर




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