आनंदघन चौबीसी | Anandghan Chaubisi
श्रेणी : जीवनी / Biography, जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)या
(१) श्रीमदू आनदघनजी नु दीक्षा समयनु नाम लाभानंद जो हतूं
(२) तपा गच्छ मां दीक्षित थया हता (३) जन्मस्थान गाम के प्रदेश,
जन्म तिथि के सवत् सबन्धी लेखित हकीकत प्राप्त थती नथी
(४) तेओ ना नजीक ना अने साथेना-मुनिवर्यो ए पण लखेला ग्र थो मा
आ हकीकत जोवामा आवी नथी इत्यादि १० बातो मे लल्लुभाई
करमचन्द्र दलाल ने न० तपागच्छ मा दीक्षित थया हता पर “आमाटे
बधु तपासनी जरूर जणाय छे” लिखा है तथा आगे भी कई बाते
लिखी है।
श्रीमदू आनदघन जीवनचरित नी रूपरेखा ( पृ० १२२ ) मे
चौवीसी के कुछ शब्दों को उद्घृत करते हुए उन्हे गुजरात मे जन्मे हुए
सिद्ध करने का असफल प्रयत्न किया गया है जब कि अधिकाश छुब्द
दोनो देशो मे समान रूप से प्रयुक्त होते थे । खासकर सी मावर्त्ती गाँवों मे
तो कोई अन्तर था हो तही । फिर भी उन्हे गुजरात मे जन्मे हुए मान
सकते हे लिखकर पृ० १२५ में श्रीमदे ज्ञान अने वे राग्य योगे कोई तपा
गच्छीय मुनिवर पासे साधु न्नत नीदीक्षा अगीकार करी हती” तेओ
श्रीए तप गच्छ मां दीक्षा अगीकार करी हती अने तेमनु नाम
लाभानदजी हतु ” *'“पोता ना गुरु नी पेठ तेओ तपागच्छनी समाचारी
प्रमाणे साधु घमनी आवइ्यकादि क्रिया करता हता”
पृ १३१ मे सबलपुरावो लिखते हुए-एक वखत श्री तपागच्छ गगन
दिवामणि श्री विजयप्रभसूरि विहार करता करता मेड़ता पासे ना
गाम मा गया-त्यां श्री आनदघनजी महाराज नी मुलाकात थई
श्रीमद॒ आनदघनजीए तप गच्छ ना महाराज श्री विजयप्रभसूरि ने
वदन कयु' अने कह, के आपना जेवा शासन रक्षक सूरि राजा नी
कृपा थी हुँ मारा आत्मा नु हित साघवा प्रयत्न करु छु श्री विजेय-
प्रभसूरिजीए श्रीमद् गमानदघनजी ने एक कपड़ो ओढाड्यो अनें
कह के तभे तमारा आत्मा ना ध्यान मा सदाकाल प्रवृत्त थाओ श्री
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