धर्माभ्युदय महाकाव्य | Dharmabhyudaya Mahakavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बहादुर सिंह जी - Bahadur Singh Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है श्२ सिंची जैनें भम्थमाला
च्यथ जे बधायों हतो अने तेथीं तेओ ईंग्रेजी उपरांत, बंयाढी, हिंदी, गुजराती भाषाओं पण खूब सरस जाणता इता भने एं
शाषाओोगां लखाएलं विविघ पुसकोना वाचनमां सतत निम्न रहेता हता.
नानपणथी ज तेमने प्राचीन वस्तुओना संप्रहनो भारे शोख लागी गयो हतो अने तेथी तेओ जूना सिकाओ, चित्रो,
मूर्तिओ अने तेवी वीजी बीजी चीजोनो संप्रह करवाना अत्यंत रसिक थई गया हता. झवेरातनों पण ते साथे तेमनौ शोख
खूब बच्यो हतो अने तेथी तेज ए विषयर्मा पण खूब ज निष्णात थई गया हता. एना परिणामे तेमणे पोतानी पासे सिक्षाओं,
चित्रों, हस्तलिखित बहुमूल्य पुस्तकों बिगेरेनो जे अमूल्य संग्रह मेगो कर्यों हतो ते आजे हिंदुस्थानना गण्वागांस्या एंवा संभ-
होमां एक महत््वनुं स्थान प्राप्त करे तेवो छे. तेमनों प्राचीन सिक्काओनों संग्रह तो एटलो बधो विशिष्ट प्रकारनों छे के जैथी
भोखीं दुनियामां तेनुं तीज के चोथु स्थान आते तेम छे. तेओ ए विषयमां एटला निषुण थई गया हता के म्होटो म्हौटा
स्युजियमोना क्युरेटरो पण वारंवार तेमनी सलाह अने अभिप्राय मेठववा अर्थे तेमनी पासे आवता जता,
तेओ पोताना एवा उच्च सांस्कृतिक शोखने लईने देश-विदेशनी आवी सांस्कारिक प्रदत्तियो माटे काय करती अनेक
संस्थाओना सदस्य विगेरे बन्या हता. दाखला तरीके - रीयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल, अमेरिकन ज्यप्राफिकल
सोसायटी न्यु्यॉक, बंगीय साहित्यपरिषद्ू कलकत्ता, न्युमिसेटिक सोसायटी ऑफ इन्डिया विगेरे अनेक प्रसिद्ध संस्थाओना
तेओ उत्साही सभासद दता.
साहित्य अने शिक्षण विषयक प्रश्नत्ति करनारी जेन तेम ज जैनेतर अनेक संस्थाओने तेमणे मुक्त मने दान आपी ए
बिघयोना प्रसारमां पोतानी उत्कट अभिरुचिनो उत्तम परिचय आप्यो दतो, तेमणे आवी रीते केट-केटली संस्थाओने
आर्थिक सद्दायता आपी इती तेनी संपूर्ण यादी मठी शकी नथी. तेमनो स्वभाव आवां कार्योमां पोताना पिताना ज़ैवो ज
प्रायः मौन घारण करवानों हतो अने ए माटे पोतानी प्रसिद्धि करवानी तेओ आकांक्षा न्होता राखता. तेमनी साथे कोई
कोई वखते प्रसंगोचित वा्तालाप थ्तां आवी बाबतनी जे आडकतरी माहिती मठी शकी तेना आधारे तेमनी पासेथी
ार्थिक सहायता मेठवनारी केटलीक संस्थाओनां नामों विगेरे आ प्रमाणे जाणी दाकायां छे। >
हिंदु एकेडेमी, दोलतपुर ( बंगाल ), रु० १५०००) कलकत्ता-मुर्दिदाबादना जैन मन्दिरो, ११०० ०
तरकी उर्दू बंगाला, ५०००) जैनधर्म फ्रचारक सभा, मानभूम, ५०० ०
हिंदी साहित्य परिषद भवन (इलाहाबाद ), १२५००)... जेन मवन, कलकत्ता, १५०००)
बिज्लुद्धार्नद सरस्वती मारवाडी हॉस्पीटठ, कलकत्ता, १००००) जैन पुस्तक प्रचारक मंडल, ऑगरा, ७५० न]
एक मेट्निंटीद्ोम, कलकत्ता, २५००) जैन मन्दिर, आगरा, ३५००)
बनारस हिंदु युनिवर्सिटी, २५००) जेन हाइस्कूल, अंबाला, २१००)
जीयागंज हायस्कूल, ५००० जेन गुरुकुल, पाठीताणा, ११०००]
जीयागंज ढंडन मिशन हॉस्पीटल, ६०००) जेन प्राकृत कोश माटे, ३५००)
ए उपरांत हजार -हजार पांचसो - पांचसोनी नानी रकमो तो तेमणे सेंकडोनी संख्यामां आपी के जेनो सरवाढों
दोढ ने लाख जेटलो थवा जाय.
सादि्य अने शिक्षणनी प्रगति माटे सिंघीजीनो जेटलो उत्साह भने उद्योग हतो तेटलो ज सामाजिक प्रगति माटे पण
ते हतो, अमेकवार तेमणे आबी सामाजिक सभाओं विगेरेमां प्रमुख तरीके भाग लड़ने पोतानो ए बिषेनो आन्तरिक उत्साह
अने सददकारभाव प्रदर्कित क्यों दतो. जेन श्वेतांबर कॉन्फरन्सना सन् १९२६ मां मुंबईमां भराएत्म खास अविकेशनना
तेओ प्रमुख बन्या इता. उदयपुर राज्यमां आावेला केसरी याजी तीर्थना वद्दीवबटना बिधयमां स्टेट साथे जे झचरो उभो
थयो हतो तेमां तेमणे सौथी वधारे तन, मन अने घननो भोग आप्यो हतो. आ रीते तेओ जैन झमाजना दवितनी प्रद-
तियोमां यथायोग्य संपूर्ण सहयोग आपता हता परंतु ते साथे तेभो सामाजिक मूढता अने सांप्रदायिक कट्टरताना पण पूर्ण
बिरोधी दता. यीजा वीजा घनवानो के आशगेवानों गणाता रूठीभक्त जैनानी माफक, तेओ संकीण मनोबूति के अन्घश्रद्धा-
प्रोषक विकृत भक्तिथी सर्वथा पर हता. आचार, विचार के व्यवहारमां तेओ बहु ज उदार छने बिवेंकशील हुता.
तेमईुं गृइस्थ तरीकेहुं जीवन पण बहु ज सादुं थने सात्त्विक हतुं. बंगालना जे जातना नवाबी गणता वातावरणमां
वेओ जन्म्या इता अने उछयां दता ते बातावरणनी लेमना जीवन उपर कशी ज खराब असर थई न हृती लगे तेजी लगसग
हूं बाताबरणभनी तइन अछिप्त जेवा दता, आटा म्द्ोठा श्रीमान होवा छतां, श्रीमंताईना खतोटा विकास के मिध्या आउंबरथी
से सदा दूर रहेता दता. दुर्ग अमे दुम्येसन प्रस्ये तेमनों भारे तिरस्कार हतो, तेमनी स्थिति ना धनकानों ज्वारे पीतामां
सोज-सोख, मानन्द-अमीद, मिर्मस-प्रास, समार॑भ-महोत्सव इस्यादिमां लाखे रुषिया उडापता दोय छे खरे सिंभीजी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...