शरत् चन्द्र : एक अध्ययन | Sharatchandra : Ek Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपक्रमशिका हु
है | लेखक के श्नुसार इस पुस्तक में लड़कों को उचित तरीके, से
पालन न करने के दुष्परिणाम को दिखाने के साथ ही साथ ब्त मान
शिक्षा प्रणाली के गुणदोष तथा हिन्दू-समाज के रीतिरिवाजों पर हॉष्टि
डाली गई थी । स्वयं बंकिमचन्द्र ने बडला साहित्य में टेकचॉद के
स्थान को माना है। इसी युग में दो श्रौर अच्छे गय-शेखक पनपे, एक
भुददेव मुखोपाध्याय, दूसरे मदनमोहन तर्कालक्वार । केशवचन्द्र सेन ने
भी इसी युग में बला साहित्य में दाथ डाला, वे भो बज़ला के प्रमुख
खष्टाश्रों में हैं । उन्होंने 'जीवन बेद” तथा “पा थना” लिखी, किंतु वे
कोई उपन्यासकार नहीं थे, बढिक घमंप्रचारक थे । फिर सी इसमें
सम्देदद नहीं कि बे गला गद्य को उन्होंने सजीवता, आज तथा काट
पदान की | इन गव्यकारों की संस्कृत के क्लासिकों के अनुकरण तथा
शमुवाद के युग के बाद किसी नये युग का प्रारम्भ नहीं हुआ था |
एस साहित्य की चारित्रिक बिशेषताश्रों का वर्णन पहले ही हो
खुका है |
बंकिमचंद्र के पहुशे भी बगका में उपस्थास . लिखे गये थे, किन्तु
उन उपन्यासों को शायद किसी भी श्रेणी-विभाग में डासना मुश्किल
है। सती उनमें कोई चरिचचिघ्रण था, ने ममोवेज्ञानिक विश्लेपण,
ने स्वाभाधिकता |. 'निवन्याबू-विलास” (१८२३) “्रालालेर घरेर
बुल्ाश' (१८५७) हुतोम प्याचार नकशा (१८६२) झादि पुस्तकों
को श्राज कॉई भी बज्ाल में नहीं पढ़ता, किन्त इसमें सन्देह . नहीं कि
पाहि ने कितनी भी श्राक्षेम रचनासं हों, वे बंकिम-रपेश की रचनाश्रों
की श्रश्रगाधियी थीं । एक भाषा जिसका गद्य परिपक्वता प्रात कर झुका
है, तथा. जिसमें एक स्टेंडडं या मानदंड कायम हो चुका, है, उसमें
रयना करना तुलनात्मक रूप से श्ासान है; किन्तु उस समय बंगला
में कोई गद्य नहीं था | साथ ही साथ उसमें गद्य भी बनाते जाना श्रौर
लिखना यह वैसा दी कठिन प्रयास था जेसे किंसी लेखक को कांगड़ा
बनाकर तब्र उस पर लिखना पढ़े, बढिक यह कास उससे भी कठिन .
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