बंगला के आधुनिक कवि | Bangala Ke Adhunik Kavi

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Bangala Ke Adhunik Kavi by मन्मथनाथ गुप्त - Manmathnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्८ सन्सथनाथ रुप अज्ञरेज मे माना जाने का रिवाज है या था फिर 'दानन्द्मठ' 'राजसिह' आदि लिखना शुरू किया । भारतवपं मे अखिल भारतीय राप्ट्रीयता-बोध एक बहुत बड़ी बात है, इसके निमाण मे वंकिम का एक बड़ा भाग है | माइकेस की कवषिता बंकिम की. इस थोड़ी-सी जरूरी आलोचना के बाद अब हम माइकेल मघुसूदन की कविता की आलोचना करेंगे । माइकेल की जीवनी संक्षेप से यह है कि वे पाश्चात्य की कुरीब-कुरीब सभी प्रधान भाषा जानते थे; पाश्चात्य में उन्होंने ,खूब श्रमण भी किया था। पहिले उन्होंने अज्ञरेजी मे कविता लिखी, किन्तु बाद को सुभाने पर बंगला से लिखने लगे । एक स्त्री के प्रेम मे पड़कर वे इसाई हो गये थे । कहना न होगा कि ऐसे व्यक्ति मे पाश्चात्य कितनी प्रबलता के साथ होगा, किन्तु वह चाहे कितना सी प्रबल हो कवित्व उनमे प्रबलतर था; तभी वे न तो शुमराह हुए, न उन्होने हुवा के सामने घुटना टेक दिया, न उनका काव्य कही अजीशंरोगी का उद्गार ज्ञात होता है । 'माइकेल की काव्यप्रेरणा में सबसे प्रबल जो हे वह हे बाहरी वस्तु का बाहरी रूप । केवल विचित्र वस्तुझओ का संश्रहकर ' उनको दूर में स्थापनकर या पास से सजाकर उनके दर्शन या स्पशन के ही आनन्द मे दी वे विभोर है। छोटी या बड़ी तस्वीर बात की बात में बातो से आँखों के सामने खड़ी कर देने मे, या कारीगर की तरह मूति की सुषमा खोज निकालने से उन्हे कितना आनन्द है, उनकी कल्पना मानो उल्लास की बिह्नलता मे थिरकने लगती है । उपमा के बाद उपसा का जाल जिछाकर वे जिस रूप को प्रकाश करते है वह विचारों की झलक नहीं; बाहरी वस्तुआ के विन्यास का सौन्दये है । विषाद की प्रतिमा स्वरूपा बन्दिनी सीता के माथे पर से दुर को वे गोघूलि के ललाट में नज्ञत्र रत्न की भॉ ति देखते हैं । वे वस्तु को भाव के द्वारा या भाव को वस्तु के द्वारा स्पर्टट करने के आदी नहीं; वे वो




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