प्राचीन भारत का साहित्यक एवं सांस्कृतिक इतिहास | Prachin Bharat Ka Sahitya Evam Sanskritik Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.49 MB
कुल पष्ठ :
412
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about निरजनलाल गोयनका - Niranjan Lal ji Goenka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)6. प्राचीन भारत का साहित्यिक एव साँस्कृतिक इतिहास
है । 'प्रश्न', 'मुण्डक' तथा “माण्डूक्य' उपनिपद् अ्रथवंवेद के समय के साथ
सम्पूक्त है ।
उपनिपद् के प्रणेनाप्रों में पूबवं वणित शिप्य-परम्परा मे घौए भी श्रषिक
विकास हुआ । उपपिपदों को वेदों के भागों में वस्थित देवने के कारण
उन्हें वेदान्त' भी कहा गया है । उपनिपदों को ब्रह्मविद्या का समुद्र माना जाता है ।
उपनतिपदों का रचना-काल 1000 वर्ष ई पू स्वीकार दिया जा सकता है ।
बेदाग साहित्य--वेद के भ्रमों को जानने के दिए जिस साहिह्प की रचना
हुई, उने बेदाग साहित्य के नाम से जता जाता है । वंदिफ साहित्य के मम को
रूप्ट करने को श्रेय वेदाँग साहित्य को ही हैं। वेद के 6 श्रग है--! शिक्षा,
2 कल, 3 व्याकरण, 4. निरुक्त 5 छत्द तवा 6 ज्योतिप । वेदिफ साहित्य
का मह्त्त्र वेदों के रहस्प् को प्रतिपादन करने या समभाने से है । स्वर-ज्ञान
को 'शिक्षा' कहते है । 'पाणिनीय शिक्षा' स्वर-ज्ञान को सूचित करने वाला प्रत्थ
है । सूत्र ग्रत्यो को 'कल्म' के अ्लरगत्त रखा गया है । श्राश्वलायन, शाखायन तथा
श्रापस्तम्ब जैसे सु्रग्रस्य 'कल्पसूतो' के रूप में प्रसिद्ध हैं । सूत्र प्रन्यो को इह्मासूत्र,
तथा धर्मसूत्र नामक रूपों में विभाजित किया गया है । प्रातिशाख्य ग्रस्थ
वेदिक व्याकरण से सम्बद्ध ग्रन्थ है । भाचार्य यास्क का 'निरुक्तम' एक नियक्त प्रस्य
है । निरक्त मे माध्यम से वेदा्थ का ज्ञान कराया जाता है । 'छत्दोध्तुशासन, प्रस्य में
उण्णिक, जगती जमे वदिक छत्दों के लक्षणों एव स्वरूप पर प्रकाश डाला
गया है । वेदाग ज्योतिप' में ज्योतिय-तत्त्व का वर्णन है ।
श्राज वेदाँग साहित्य से सम्बद्ध श्रतेक प्रन्य उपलब्ध नहीं होते । वेदाग
साहित्य में का विकास सर्वाधिक हुमा । सूत्रग्रव्यो का रचना-काल 600
ईसा पूर्व माना गया है। 'कल्प' के श्रतिरिक्त धन्य वेदागो का विकास मुरयन
लौकिक सच्कृत के युग में ही हुपा,।
लोकिक साहित्य--जव वंदिक सस्कृत देववाणी या ऋषियों के साहित्य की
भाषा के रूप में प्रतिष्ठित थी, तब जन-समाज में जिस सस्कत भाषा को व्यवद्दुत
किया जा रहा था, उसी को प्रपेक्षाकृत शुद्ध रूण में साहित्य में प्रयोग करके लौकिक
सस्कृत्त का स्वरूप प्रदान किया गया । लौकिक सस्कृत में सत्रमे पहले झादि कवि
बाह्मीकि ने 'रामायण' की रचना की । रामायण के पर्चा मड़ाभारत तथा पुराण
एवं स्मृति-ग्रत्यो का प्रणयन लौकिक मापा में ही हुआ । कालान्तर मे लौकिक
सस्कृत ही साहिन्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही । छठी राताव्दी ईसा पूर्व
झाचामें पाणिनि ने नामक लिखकर सम्कृत भाषा को
सुव्यवस्थित कर दिया था । लौकिक सस्कृत श्रब सस्कृत के नाम से जानी जाती है !
लौकिक सस्क़ृत सादित्य का इतिहास सुविस्तृत है ।
2 पौराखिक सहाकाव्य--लौकिफ सस्कृत में पाणिनि ते पूर्व की रचनाएँ
पौरारिक प्रतिमानो को लेकर भ्रवतीणं हुई । भाषा धौर पुराण-प्रथित सिंद्धान्तों
को ध्रपनाने के कारण पौराणिक महाकाव्यों का स्वरूप चरित-काव्य के रुप मे
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