हिंदी के कवि और काव्य | Hindi Ki Kabi Aur Kabya

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Hindi Ki Kabi Aur Kabya by श्री गणेशप्रसाद द्विवेदी - Shri Ganeshprasad Dwavedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) इतना पता अवश्य चल जाता/हि कि संतसादित्य और संतों के आध्यात्मिक विचार इन से प्रभावित 'झवश्य हुए । संतसाहित्य में नाथ सप्रद्यबाले महाकाव्यों द्वारा प्रचारित ज्ञानमार्ग के साथ साथ जो भक्ति का अपूर्व स्रोत मिला हुआ दिखता दे उस का श्रेय स्वामी रामानद्‌ तथा उन के कुछ सत शिष्यों को ही देना पड़ेगा । फिर इस के सिवा छोटे बड़े, उच-नीच सब को समान रूप से अपनाना भी स्वामी रामानद्‌ के समय से ही शुरू हुआ जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है। इस सिल- सिंले मे स्वामी जी के शिष्यो मे सदना 'और रैदास के नाम विशेष रूप से उल्लेख- योग्य है । सदना जाति के कसाइई थे, और रेदास चमार थे । कसाई होते हुए भी ये जीवहत्या नहीं करते थे । केवल कटा हुछां मांस बेचा करते थे | इन की भक्ति झपूव थी । इतना विनय भाव कम ही देखने को मिलता है, जैसे-- एक बूँद जल... कारने , चातक. दुख पावे। प्रान गये. सागर मिलै , पुनि काम न झावै ॥ प्रान जो थाके थिर नाहीं , कैसे विरमावो । बूड़ि मुये नौका. मिले , कहु काहि.. चढावों ॥ मैं नाहीं कुछ हों नाहीं , कु श्राहि न मोरा। असर लज्जा राखि लेहु , सदना जन तोरा | अंहभाव का पूण रूप से तिरोभाव, निपट दीनता, 'अझपने शाप को पूर्णतः! “उस के ' हांथो सौप देना; यह सब पराभक्ति के लक्षण हैं। ऊपर वाले पद में हम यह सभी बाते पाते है । रैदास की रचना से भी हम यही भाव पाते हैं । भक्ति की यह भावना आझागे चलन कर प्रायः सभी संतों ने झपनाई और इस का उपदेश दिया । थे दोनों महात्मा कबीर के सम-सामयिक थे । रामानंद के एक शिष्य पीपा जी का भी प्राथमिक संतों मे एक विशेष स्थान है । ये एक राजा थे और कबोर से कुछ पहले के थे। इन का उल्लेख यहां पर इस लिये करना हम झावश्यक समभते है कि सब से पहले यथासंभव इन्हों ने ही स्पष्ट शब्दों मे साकार उपासना को आडबर और पूजा के लिये देवता, मदिर तथा अन्य असख्य वादय-उपचारो को व्यथ बताया । इन का पद देखिये -- काया. देवल काया. देवल , काया. जगम जाती | काया. धूप दीप नेवेदा , काया पूजों पाती ॥ काया बहु खड़ खोजने , नव निद्धी पाई । ना कु आइबो ना कछु जाइबो , राम की दुद्दाइ ॥




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