लीक से हटकर | Leek Se Hatkar

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Leek Se Hatkar by राजेन्द्र प्रसाद - Rajendra Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थ ०... गाँवों कादर्द | १३ कदया जाता । फसल बीमा भी नहीं कर्राया जा रहा है । मेरा तो यह भी सुझाव है कि लागत सूल्य का पता लगाने के लिए . किसी पकिसान के छेत को देखते के बजायकिसी सरकारी फाम का हो खर्च एवं उत्पादन का पता सलगा लेना पर्मात्त होगा । यह भी तर्क दिया जाता हैं कि अनाज के दाम कम होने से सभी वस्तुओं के दाम काम हो जावगे । सैक्रिन हम देख रहे हैं फिधान और गेहूं के भाव कर्म हैं पर जीवनीपयोगी अन्य वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं। यह भी विचारणोय है कि जब किसान अपना अनाज बेचता है तो बाजार भाव कम रहता है भर वही माल जद उसके पास से निकल जाता है तो उसके भाव डेवढे व दूगने हो जाते हैं। यह भी शहरी सर्थव्यवस्था को विडम्वना है ! * अपरोक्ष रूप से संभवत: एक राष्ट्रब्यापी पडयन्त्र अनजाने में ही ग्रामीण नेतृत्व के विरुद्ध चल रहा हैं । एकार्धिकारवादी उद्योगपतियों व हू जीवा दियों का देश की राजनीति व प्रशासन मे, चाहें वह किसी भी राजनितिक दल को बयो न हो, पूरा दखल बना रहे, यद्द प्रयास इन लोगों का भारतवर्ष को आजादी के बाद से ही प्रारम्भ है। प्रयास महू है कि कपिमुलक ग्रामोद्योग शधान ग्रामीण अर्थव्यवस्था स्थापित न हो सके क्योंकि यदि ऐसा होता है तो एकाधिकारवादो पूंजीवाद समाप्त हो जावेगा । देश में पूंजी के महत्व से इन्कार नहीं किया जा सकता । किसी भो बर्धव्यवस्था के लिए पजी मावश्यक है, किन्तु विरोध है. पूंजीवाद का! 1 यह पूंजीवाद बह दानव है जो अंप्रेंयी शासन के साथ भारत में आया और लाखों करोड़ो ग्राम-शिल्पियीं को उनके प्रामोद्योगों से वंचित कर मशीनों और भिल उद्योगों के जरिये सारे देश में विष बुझ के समान छा गया ! हमारे देश का प्रामीण शिल्प शता- 'ियों से विश्द बिष्यात रहा है। ढाका के किमव्वाद के मलमल और सलनारसी साहियों का क्रेज विलायत के मेमों को इतना था कि उसे रोकने 'के लिए कानून और राजदेण्ड से काम लेना पड़ा था । एक जंगूठो के भीतर से एक थान कपड़ा अभी तिपुरी कांग्रेस में निकास कर दिखाया गया था । सैकिन घीरे-घीरे यह समाप्त कर दिया गया । ग्रामीण उसोग प्रयासपूर्व कं “सप्द किए गए । उत्पादन के सभी साधनों का मिल उद्योगो में कैन्द्रीयकरण किया गया तया. पूंजीवादी अधिप्ठानों का हो राजसत्ता पर असुण्ण आधिपत्य हो गया । गाँव में बेकारी और भुवमरी आ गई । आज की राज- नीति खुशहाली ओर सम्पन्नता की राजनीति है । चुनाव दिन-प्रठि-दिन




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