वैदिककाल का इतिहास | Vaidikkal ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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7 .' मस्तावना ॉ श्३ लुप्त हुए प्राचीन वैदिकर्म को पुन! जायत किया वह मात! स्मरणीय * महर्षि खा दयानन्दसरस्वती ” हैं, पद मदर्पि का ही काम है नो झाज सम्पूर्ण देश में धर्म की खोज होर ही है, श्र पूज्य श्री प॑ ०मदनमोइन जी . मालवीय तथा कमंवीर ला० जञाजपतिरायजी जैसे मभावशाली पुरुष गोरक्ा तथा हिन्दुओं के सुधार का उपाय कर रहे हैं, इस समय हिन्दूपानर का कतेव्य है कि महर्षि के मति कृतज्ञता मकट करें और उनके सदुपरेशों से लॉभ उठाकर झपने जीवन को उच्च बनावें ॥ - दर - दूसरे कुर्मण्य पुरुपसिंद “गुरुगोविन्द्सिंह” हैं, जिन्होंने अपना स्व निदावर कर हिन्दूधर्म को श्रपनाया, महान्‌ दुश्ख तथा कं को सामना किया, अपने मासूम बच्चों को बलि दियो परन्तु अपने पाणुप्रिय वेदिकधमं का हात न होने दिया, यह उन्हीं मदापुरुष का काम है कि झाज हिन्दू अपना सीना निकालकर हिन्दू, कहते हैं, झतएव हिन्दूमात् का कर्तच्य है कि गुरुदेव गोविन्द्सिंदनी के जीवन सें शिक्षा ग्रहण कर *कर्मएय ” बनें, क्योंकि कर्म सीसी पुरुष ही अपने श्रेय को माप्त होसकता - है झकमंणय नहीं-॥ . कविवर श्री पं० आययंधुनिजी महाराज ने निम्नलिखित कविततों में सत्य दी वर्णन किया है नो हिन्दू जाति को सदा ध्यान में रखना चाहिये?- थी कविसे. ्‌ काशी विश्वनाथ को निशान मिटजाता तब- तीर्थों के धाम सब होतें तुर्कान के । मथुरा मसीत और कुरान रीति होती सदा- योगीजन झानन्द न पति योगध्यान के ॥ हिन्दू रीत नीत मिठजाती सब भारत की- . लम्बू केशमीर भी न होते राजगान के । _ मान मर्यादा कीच' बीच मिलजाती सब- जो नूतीर छूटते “गोविन्दर्सिंह” ज्वान के ॥




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