विविध जैनतत्त्व विचारमय जैन हितबोध | Vividh Jaintattva Vicharmay Jain Hitbodh

Vividh Jaintattva Vicharmay Jain Hitbodh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री विश्वेशवन्द ! न... विविध जेनतत्व विचारमय चर बच कम, ॥ हे 3 नच छिंचवोध, ( दिदी-भापालुबाद समटेकृत! ) ब्किडि न वश्तुनिदेशात्मक मेगलाॉचरण, ( दोहरा-छंदू, ) अर्ग अनादि अन्यक्त मु, चिदानंद चिट्रप; िन्दक चरनसरोगमे, नमत सदा सुरभूप, प्‌ तिन्दकों छुमिरन करि लिखुं, दिंदि जन हितवोध; पियें पाठक नित मति, तजि मततत्व विरोध, न सार सार सब संग्रहो, तजिके दोष तमाम; लीजें परमानंदमें, अलुभों सुख अभिराम- मै न्डाा न प ह्_ श्री बीर प्रथा निवान और अपना कत्तव्य, ' दुपेन्र; गदर और थोगीष्द्रकि परमभपूजय चरम वीर्थकर श्री क५_ की # ७ €१ #११५, ही च्पह मन वीराधिवीर महावीर प्रशुजीने उत्छष्ठ थोध और तपके बसें




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