राजस्थान में चोथा ग्राम चुनाव | Rajasthan Maine Chotha Gram Chonav

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Rajasthan Maine Chotha Gram Chonav by जवाहिरलाल जैन - Javahirlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्दे से यह जानकारी भी मिली कि चुनाव के श्रास पास के दिनों में वहां पर से शराव के पीने-पिलाने सम्बन्धी नियमों को वाकायदा ढीला कर दिया था । मतदान के दिन से पह्टिले ही उन क्षेत्रों में शराव की वोतलें बड़ी संख्या में इघर उधर लाते-लेजाते देखा गया । चुनाव की व्यवस्था सभी जगह निर्दलियों की तुलना में दलीय उम्मीदवारों की झ्रधघिक प्रमावशाली, व्यापक तथा खर्चीती थी । इसका कारण स्पष्ट था | दलीय उम्मीदवारों के साधन श्रधिक थे जवकि निदंलीय उम्मीदवारों को सब कुछ श्रपने ही दूते पर करना पढ़ता था । घुनाव प्रचार में जहां निर्दलीय उम्मीदवार यह कहते थे कि दलीय चंघन के कारण पार्टी के प्रतिनिधि जन-हित के मामलों में स्वतंत्र निरणुय नहीं कर पाते हैं श्रत: उन्हें मत नहीं देना चाहिये, वहां दूसरी ध्रोर दलीय उम्मीदवार निर्दलीय उम्मीदवार के लिए सभी जगह ऐसा कहते सुनाई दिये कि निर्दलीय उम्मीदवार विधान समाश्रों में जाकर कुछ भी नहीं कर पाते हैं, क्योंकि दलीय संगठनों के मुकावले में श्रपनी उनकी स्थिति “नककार खाने में तूती ” जैसी ही रहती है । चुनाव प्रचार के सिलसिले में कुछ क्षेत्रों में वहुत ही व्यवस्थित ढंग से काम हुआ । भुकट्ठ जिले में एक उम्मीदवार की श्रोर से सबसे पहिले एक सर्वेक्षण दल को प्रत्येक गांव में जाकर जाति वार सूची तैयार करने का काम सोंपा गया । यही दल साथ में प्रत्येक गांव के मुखियाओओं की सूची 'मी तंयार करता जाता था जिनसे वाद में उम्मीदवार श्रथवा उनके प्रमुख प्रतिनिधि सीधा सम्पर्क करते थे । इस क्षेत्र के एक प्रमुख उम्मीदवार के व्यापारिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले संकड़ों भधिकारी तथा कमंचारी कई सप्ताह तक चुनाव प्रचार के निमित्त झ्रपने परिवारों के साथ इपर ही रहे । इस क्षेत्र में चुनाव प्रचार के सिलसिले में चच्चों तथा स्त्रियों का मी व्यवस्थित ठग से उपयोग किया गया । इस क्षेत्र में कई लोगों को जोकर की ड्रेसे पहिना कर नी घुमाया गया जो श्राम लोगों का मनोरंजन मी करता था श्रौर चुनाव प्रचार भी करता था । चुनाव प्रचार के दौरान कई जगह बड़े पमाने पर ऐसे चित्र मी वनां , कर दिखाये गये जिसमें कांप्रस के कलेवर पर भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, तथा पक्षपात के दाग लगे हुये थे तथा उस पर विरोधी पार्थ्यां झ्पने पंजों से भ्रौर पंखों से भपट्टा मार रही थी । इसी प्रकार के भाशय वाले तरह तरह के चित्र कई स्थानों पर लगाये गये थे ।




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