हिन्दी निबन्ध की विभिन्न शैलियाँ | Hindi Nibandh Ki Vibhinn Shailiya

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Book Image : हिन्दी निबन्ध की विभिन्न शैलियाँ  - Hindi Nibandh Ki Vibhinn Shailiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्६ सा भाव इक भवित करेंगे ? यहीं वात भ्रहिसा के लिए. भी है । कोई को फ्रिया या भाव, भवित की संज्ञा तब तक प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक उसका संबंध प्रेम से न हो। भव्ति साधारण प्रेम से भिन्त है, नयोंकि उसमें पूज्य बुद्धि का मेल भी रहता है। भगत मगवानू के समक्ष झपना समपंण कर देता है । श्रत: भक्ति में प्रेम, रस तथा समर्पण इन तीन तसवों की स्थिति होने से हम उसे इस प्रकार परिभाषित कर सकते न: भ्ति प्रेम की समर्पणमगी रसात्मक अनुभुति है । सलेकिन इन दौ-एक भूलों से शुक्लजी फी महत्ता फंम नहीं होती । हू हिन्दी के मूर्घन्य दैलीकार हैं । उन्होंने मनोभाव-सम्वन्धी जो निर्वध 'लिंऐे हैं, दे हिन्दी की गर्द-सम्पत्ति हूँ। इन निर्वधों की गहराई तंमा आब श्रीर भाषा की रमणीयता श्रन्यत्र दुर्लभ है । शुक्लजी के मनोभाव-सम्बन्धी निवंध उन्हीं के शब्दों में वस्तुतः उनकी “अन्तयप्रि में पड़नेवाले कुछ प्रदेश हूँ । यात्रा के लिए निकलती रही है बुद्धि, पर हृदय को भी साथ. लेकर | भ्रपना रास्ता निकालती हुई बुद्धि जहाँ कहीं मामिक या भावाकर्षक स्थलों पर पहुँची है, वहाँ हुदय थोड़ानवहुत्त रमता श्रपती प्रवृत्ति के श्रनुसार कुछ कहता गया है । इस प्रकार यात्रा के श्रम का परिहार, होता रहा है।' शुक्लजी के निदधों में हिन्दी निर्वघ-कला उस ऊंचाई पर पहुंच गई है, जहाँ से देखने 'पर श्रासपास के अन्य समकालीन निवंधकार वोने नज़र भ्ाते हैं । शुक्लोतर युग--शुक्तजी के परचातू निवंध-लेखन में कोई विशेष अगहि नहीं हुई । शुद्ध नियंध लिखनेवालों का यतेमान समय में जैसे प्रभाव ही है । भ्रघिकत्तर लेखक समालोचनात्मक यां सुचनात्मक लेख । लिखते हैं । समाचार-पत्रों में राजनीतिक, श्राधिक तथा सामाजिक विपयों पर लेख निकलते रहते हूं । चिष्वविद्यालयों के प्राध्यापक शोध प्रवंध 'लिखते हूं । इंस तरहू निदंध की भोर या तो व्यान नहीं दिया जा रहा है या लेखकों में उमंग नहीं हे । इस युग में सभी छायावादी कवियों ने गथ लिखा, लेकिन शुद्ध निवंघों की सीमा छूनेवाली रचनाएं सिफं महादेवी वर्मा की हैं । महादेवी की. बेदनानुभूति ते उनके रेखाविंत्रों में मामिकता का समावेदा किया हैं । भ्रस्य कवियों में 'प्रसाद', पन्त तथा निराला के लेख निदंध नहीं कहे जा संकते ! थ इस युग के वास्तविक . निवंघकारों में हशारीप्रसाद द्िवेदी (सन २६०७...) युलावराय (सन्‌ १८८६-१४६३) संमवूक्ष वेनीपुरी (सनुं




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