हिन्दी निबन्ध की विभिन्न शैलियाँ | Hindi Nibandh Ki Vibhinn Shailiya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
381
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्६
सा भाव इक भवित करेंगे ? यहीं वात भ्रहिसा के लिए. भी है । कोई
को फ्रिया या भाव, भवित की संज्ञा तब तक प्राप्त नहीं कर सकता, जब
तक उसका संबंध प्रेम से न हो। भव्ति साधारण प्रेम से भिन्त है,
नयोंकि उसमें पूज्य बुद्धि का मेल भी रहता है। भगत मगवानू के समक्ष
झपना समपंण कर देता है । श्रत: भक्ति में प्रेम, रस तथा समर्पण इन
तीन तसवों की स्थिति होने से हम उसे इस प्रकार परिभाषित कर सकते
न: भ्ति प्रेम की समर्पणमगी रसात्मक अनुभुति है ।
सलेकिन इन दौ-एक भूलों से शुक्लजी फी महत्ता फंम नहीं होती ।
हू हिन्दी के मूर्घन्य दैलीकार हैं । उन्होंने मनोभाव-सम्वन्धी जो निर्वध
'लिंऐे हैं, दे हिन्दी की गर्द-सम्पत्ति हूँ। इन निर्वधों की गहराई तंमा
आब श्रीर भाषा की रमणीयता श्रन्यत्र दुर्लभ है ।
शुक्लजी के मनोभाव-सम्बन्धी निवंध उन्हीं के शब्दों में वस्तुतः
उनकी “अन्तयप्रि में पड़नेवाले कुछ प्रदेश हूँ । यात्रा के लिए निकलती
रही है बुद्धि, पर हृदय को भी साथ. लेकर | भ्रपना रास्ता निकालती
हुई बुद्धि जहाँ कहीं मामिक या भावाकर्षक स्थलों पर पहुँची है, वहाँ
हुदय थोड़ानवहुत्त रमता श्रपती प्रवृत्ति के श्रनुसार कुछ कहता गया
है । इस प्रकार यात्रा के श्रम का परिहार, होता रहा है।' शुक्लजी के
निदधों में हिन्दी निर्वघ-कला उस ऊंचाई पर पहुंच गई है, जहाँ से देखने
'पर श्रासपास के अन्य समकालीन निवंधकार वोने नज़र भ्ाते हैं ।
शुक्लोतर युग--शुक्तजी के परचातू निवंध-लेखन में कोई विशेष
अगहि नहीं हुई । शुद्ध नियंध लिखनेवालों का यतेमान समय में जैसे
प्रभाव ही है । भ्रघिकत्तर लेखक समालोचनात्मक यां सुचनात्मक लेख
। लिखते हैं । समाचार-पत्रों में राजनीतिक, श्राधिक तथा सामाजिक विपयों
पर लेख निकलते रहते हूं । चिष्वविद्यालयों के प्राध्यापक शोध प्रवंध
'लिखते हूं । इंस तरहू निदंध की भोर या तो व्यान नहीं दिया जा रहा
है या लेखकों में उमंग नहीं हे । इस युग में सभी छायावादी कवियों ने
गथ लिखा, लेकिन शुद्ध निवंघों की सीमा छूनेवाली रचनाएं सिफं महादेवी
वर्मा की हैं । महादेवी की. बेदनानुभूति ते उनके रेखाविंत्रों में मामिकता
का समावेदा किया हैं । भ्रस्य कवियों में 'प्रसाद', पन्त तथा निराला के
लेख निदंध नहीं कहे जा संकते ! थ
इस युग के वास्तविक . निवंघकारों में हशारीप्रसाद द्िवेदी (सन
२६०७...) युलावराय (सन् १८८६-१४६३) संमवूक्ष वेनीपुरी (सनुं
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