संवत्सरी | Samvatsari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
370
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संवससरी [७
...» नाग
कार्तिक शुक्ला ७
जब तक तुम्हारा मासिक और हृदय निंदा और प्रशत्ता
को समान रूप में नहीं अहण करता, समझना चाहिए कि
तुमने तब तक परमात्मा को पाटिचाना हा नहीं है |
है|
कर क£ के रे
प्रश्ा और निन्दा सुनकर हे और विषाद की उत्पात
बुद्धि के विकार के कारण होती है। बुद्धि का यह विकार
परमात्मा की प्रार्थना से निश्शेष हो जाता है । '
«5८. 56, निज है नि
ग्ह न न क्र
0 ित दिन पृथ्वी पर॒परतत्रता का आस्तित्र नहीं रहेगा,
उस दिन सूर्य, पृथ्वी और समुद्र अपनी-श्रपनी सर्थदा लाग देंगे !
है गेट रद नह
जो: पुरुष परभन श्र परी से सदव यलपूर्वक वचता
रहता है, उत्तका-कोई कुछ भी नहीं विगाइ़ सकता |
... तुम्हारे सुपस्कारों को दुस्सेप्कार दवा देते हैं और तुम
गफ़लत में पढ़े रहते हो | हृढ़ता के साथ अपने सु्तरकारों की
रक्षा करो तो आत्मा की बहुत उच्षति होगी । 1
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