आनन्दकी लहरें | Anand Ki Laharen

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Anand Ki Laharen by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आनन्दकी रहें “्त्रीकृप्णका उदाहरण देकर पाप करनेवाछे ही कलझ्ी हैं, श्रीकृप्णंका निर्मठ चरित्र तो नित्य ही निष्कछड है |” “भगवान्‌की ओरसे कृत्रिम मचुष्यको कोपका और अकन्रिमको 'करुणाका प्रसाद मिछता है । कोपका प्रसाद जलाकर, तपाकर उसे झुद्ध' करता है और करुणाका प्रसाद तो उस झुद्ध हुए पुरुपको ही मिलता है ।? जो भगवानका भक्त बनना चाहता है उसे सबसे पहले अपना इृदय झुद्ध करना चाहिये और नित्य एकान्तमें भगवान्‌से न्यहद कातर प्रार्थना करनी चाहिये कि “हे भगवन्‌ ! ऐसी कृपा. करो जिससे मेरे हृदयमें तुम्हें हर-घड़ी हाजिर देखकर तनिक-सी 'पापवासना भी उठने और ठहरने न पांवे; तदनन्तर उस . निर्म० हृदयदेशमें तुम अपना स्थिर आसन जमा लो और मैं 'पल-पढमें तुम्हें निरख-निरखकर निरतिशय आनन्दमें मम्र होता रहूँ ।” “फिर भगवनू ! तुम्हारे छिये में सारे भोगोंको विषम रोग समझकर उनका भी त्याग कर दूँ और केवरू तुम्हें छेकर ही मौज करूँ । इन्द्र और ब्रह्माका पद भी उस मौजके सामने सतुच्छ-अतिं तुच्छ हो जाय ।' “फिर खामी दाझुराचार्यकी तरह मैं भी गाया करूँ---' शत




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