अवतार रहस्य | Avatar Rahasya

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Avatar Rahasya by श्री आत्माराम जी - Sri Aatmaram Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ देन के आप्त शब्द की व्याख्या में यदद वचन है । इस से पाया जाता है कि पुराने ऋषि मानते थे कि आप्त अथीत पूर्ण विद्वान और सदाचांरी पुरुष ऋषिकुल आय्यकुल और म्लेच्छ कुछ में से. होते हैं। म्लेच्छ राब्द्‌ का अर्थ व्याकरण की दृष्टि से कुछ भी ध्णा सूचक नहीं कारण कि संस्कृत में जो शब्द का झुद्ध उच्चारण नहीं कर सकता उस म्लेच्छ कहते हैं । विदित होता है कि पुराने समय में जो ठोग आर्थ्य॑ कुछ में जन्म ले कर भी किसी कारण से अविद्वान्‌ रह जाते थे वह स्वभावतः म्ठेच्छ संज्ञा के अधिकारी बनते थे । परन्तु उक्त ऋषि सूत्र से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि उस समय मनुष्य मात्र को आर्य्य ऋषि वा आप्त बनने का समान अधिकार था । पुराने समय में धम्म शब्द के अर्थ नियम कर्तव्य के थे । मानव घम्में शात्र कहने से यहां धम्मे का अर्थ नियम का है। इसी शाख्र में राज्य का घम्मं शिष्य का धर्म्म॑ इत्यादि चाब्दों में धम्मे शब्द कतंव्य के अर्थ में आया है । आज धर्म्म॑ दब्द के अर्थ भी उसके थातु पर से न लेते हुए ठोग कल्पित के रहे हें । प्राचीन समय की मानव जाति का धम्में अन्थ वेद था और अ्रगाति शलि वा आर्य्य मनुष्यों का मंत्र 7660 वा कमा गायत्री मंत्र था जो मनुष्यकों प्रगति के शिखर पर छे जने का जहां एक तरफ दर्शक था वहां दूसरी तरफ मजुस्य को ईश्वर की पा#600 व्यवघान रहित उपासनाका अधि कार दता था । मदाशय जाशीपुरा के लेख में अनेक स्थलों पर जो उत्तम वर्णन इस बात का मिलता है कि भूलेक के नाना देशों के वासी सूर्य्य की तरफ मुख कर के उपासना करतेथे इसका रददस्य अभी युरापके पण्डित नद्दीं समझे कारण कि वह्द गायत्री मंत्र न सविता शब्द को देखकर साविता के अर्थ सूर्य की उपासन समझ लेते दूँ ।. मद्दादय कोलबुक 001607001 ने एक स्थल पर लेखा ईै कि गायत्री मंत्र में इस भौतिक सूय्य की उपासन। नद्दीं परन्तु उसके इसमतको अभी तक युरोप के पाष्डित नहीं




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