श्री नन्दीसूत्र | Shri Nandi Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
537
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ध्
| झपनी बात
आज से लगभग अर्थ-शताब्दी पूर्व मेरे पूज्य गुरुदेव प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी 3
महाराज के दादा गुरुदेव जैनागम रत्नाकर श्रुतज्ञान के परम आराधक पूज्य आचार्यसम्राट श्री क;
आत्माराम जी महाराज ने नन्दीसूत्र की हिन्दी भाषा में सुन्दर विस्तृत टीका लिखी थी। यह टीका क्र
समर्थ टीकाकार आचार्य श्री मलयगिरिकृत संस्कृत टीका तथा नन्दीसूत्र की चूर्णि के आधार पर टी
बड़ी ही सुगम-सुबोध शैली में किन्तु आगम ज्ञान की गम्भीरता लिए हुए है। इस हिन्दी टीका का कक
सम्पादन आगम मर्मज्ञ पं. श्री फूलचन्द्र जी महाराज “श्रमण' द्वारा हुआ। आज भी हिन्दी भाषा में
ऐसी सुन्दर और मौलिक टीका दूसरी उपलब्ध नहीं है।
प्रश्न हो सकता है जब धरती पर प्रकाश करने वाला सूर्य विधमान है तो फिर दीपक या
मोमबत्तियाँ जलाने की कया आवश्यकता है? इतनी विशाल और प्रामाणिक हिन्दी टीका प्रस्तुत हो
तो फिर मुझे नन्दीसूत्र का नया सम्पादन करने और प्रकाशन करने की क्या आवश्यकता हुई?
इसकी क्या उपयोगिता है?
यह सत्य है कि सूर्य के प्रकाश में दीपक के प्रकाश की कोई खास आवश्यकता नहीं रहती
परन्तु जिन भूगृहों में, गुफा जैसे घरों में, बन्द कोठरियों में दिन में भी सूर्य की किरणें नहीं जी
पहुँचतीं वहाँ तो दिने में कृत्रिम प्रकाश करना पड़ता है। आजकल तो दिन में भी जगह-जगह घरों फू;
में , कार्यालयों में, गोदामों में, कारखानों में भी लाइटें जलानी पड़ती हैं। क्योंकि बहुत से स्थान झा
ऐसे हैं जहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच पाता, वहाँ लाईट की भी अपनी उपयोगिता है,
आवश्यकता है। सूर्य की विद्यमानता में भी अन्य छोटे-मोटे साधन उपयोगी होते ही हैं।
आज हिन्दी राष्ट्रभाषा है और अंग्रेजी विश्वभाषा है। हमने कुछ वर्ष पूर्व जैन आगमों का के
हिन्दी-अंग्रेजी भाषा में सचित्र प्रकाशन प्रारम्भ किया था। यद्यपि इस सचित्र प्रकाशन में भी हमारे ५
आधारभूत आगम पूज्य आचार्यसम्राटू द्वारा सम्पादित आगम ही रहे। उन्होंने जो ज्ञान की दिव्य
किरणें फैलाई हैं हमने उन्हीं में से कुछ ज्ञान-कण बटोरने का प्रयास किया है। परन्तु उन आगमों द
को एक तो-कुछ संक्षिप्त रूप में सरल सुबोध भाषा में; दूसरे हिन्दी के साथ अन्तरष्ट्रीय भाषा
अंग्रेजी में तथा उनमें आये हुए विषयों का भाव चित्रों में प्रकाशित करने से ये आगम अधिक
रुचिकर और . अधिक लोगों के लिए पठनीय बन गये हैं। मैंने अनुभव किया है कि चित्र सहित रह
और अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रकाशित होने वाले आगम भारत में भी जहाँ अनेक जिज्ञासु
मैंगाकर पढ़ने लगे हैं वहाँ विदेशों में बसने वाले प्रवासी भारतीय तथा प्राच्य विद्या के जिज्ञासु क#
विदेशी विद्वान भी इन आगमों से लाभान्वित हो रहे हैं। अंग्रेजी माध्यम के कारण उनको इन प्
आगमों का अर्थ-बोध सरल हो गया तथा चित्रों के कारण रुचिकर तथा ज्ञानवर्धक भी बना है। फ;
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