देश ब्रतोधोतानाम ५१८ | Deshbratodhotanam Ac 518
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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करना चाहिए । आत्मा प्रभुतासंपन्न है; जिसे उसकी
प्रमुता का विश्वास नहीं हे और अल्पज्ञता तथा
रागद्ठ ष की प्रभुता मानता हो तो उसे भगवान की
प्रमुता ज्ञात नहीं होती ।
गाथा--३
बीज॑ मोश्षतरोईशं भवतरोमिध्यात्वमाहुजिना: ।
प्राप्तायां दशि तन्मुमुक्षुमिरलं यलो विधेयो बुधे: ॥
संसारे बहुयोनिजालजटिले ऑ्राम्यन कुकर्मावृत : ।
क प्राणी लभते महत्यपि गते काले हि तां तामिह ॥३े॥
ज्ञान स्वभावी आत्माका पूर्ण विश्वास ही पृण
पतित्र मोक्ष द्माका बीज है ।
आचाये पद्मनंदि कहते हैं कि आत्माकी पूर्ण अमृत आनन्द
दशा मोक्षरूपी वृक्ष है; उसका बीज सम्यग्दर्शन है । जैसे आम
का बीज उसकी शुठछी ही होती है लेकिन आकफल नहीं होता
उसी प्रकार परमानंद दशा; अरागी, वीतरागी; विज्ञान दशाका
बीज सम्यग्दर्शन है । राग भाव छोड़कर आत्माकी निर्विकल्प
श्रद्धा सम्यक्दशन है। ऐसा सम्यक्दर्शन दोनेके पश्चात् श्राव-
कत्व होता है। मोक्षरूपी वृश्षका बीज देव, शास्त्र: गुरुकी कृपा
या उनका निमित्त या पुण्य-पाप नहीं दै अपितु सम्यग्दर्शन ही
है । स्वयं ही अपना सम्यग्दर्शन प्रकट करे तो देव-गुरु-शास्त्र
निभित्त कददलाते हैं । सम्प्रदाय या कुछमें जन्म लेसेसे ही कोई
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