समय सार नाटक | Samay Saar Natak

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Samay Saar  Natak     by पं. बनारसीदास - Pandit Banarsidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ बात उतनी नहीं थी जितनी बदनामी कवि को उठानी पड़ी । इसकी चर्चा कवि ने इस प्रकार की है - कहाहि लोग श्रावक अरु जतो बानारसी खोसरामती । तीनि पुरुषकी चले न बात । यह पढित ताते विख्यात 11६०८।। सुनी कहै देखी कहे कलपित कहै बनाइ। ... दुराराघिए जगत जन इन्हसौं कछू न बसाइ ।1६१०।॥। यह दशा कवि की बारह वर्ष तक रही । इस बीच कवि ने बहुत सी कविताएँ लिखी जो बनारसी विलास मे संग्रहीत हैं । कवि ने उनकी प्रामाणिकता के बारे में लिखा है कि यद्यपि मेरी दशा उस समय निश्चयाभासी स्वच्छन्दी एकाती जैसी थी तथापि जो कुछ उस समय लिखा गया वह स्यादुवाद वाणी के अनुसार ही था । सोलह से बानवे लौ कियौ नियत-रस-पान । पे कबीसुरी सब भई ... स्यादवाद-परवांन ॥। ६२६ ॥। इसके बाद अनायास ही आगरा में पंडित रूपचदजी पांडे का आगमन हुआ और उनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर बनारसीदासजी सहित उनके सभी अध्यात्मी साथी उनका प्रवचन सुनने गये जिसमें उन्होंने गोम्मटसार ग्रंथ का वाचन करते हुए गुणस्थान अनुसार क्रिया का विवेचन किया । निश्चय-व्यवहार का स्वरूप भी सही-सही समभाया और कवि को उनके ही द्वारा स्यादुवाद का सच्चा ज्ञान हुआ सत्य की प्राप्ति और आत्मा का अनुभव हुआ । जिसका वर्णन कवि ने बडी ही श्रद्धा के साथ किया है - अनायास इस ही समय नगर आगरे थान । रूपचंद पंडित गुनी आयो आगम-जान ।। ६३० ॥। तिहुना साहू देहूरा किया । तहां आइ तिनि डेरा लिया ॥। सब अध्यातमी कियौ बिचार । ग्रंथ बंचायो गोमटसार ।॥। ६३१ ॥। तामैं गुनथानक परवान । कहाँ ग्यान अरु क्रिया-बिधान । जो जिय जिस गुन-थानक होइ । तेसी क्रिया करे सब कोइ 1 ६३२ ॥। भिन्न भिन्न बिबरन बिस्तार । अंतर नियत बहिर बिबहार ॥। सबकी कथा सबे बिधि कही । सुनिक ससे कछुव न रही 1 ६२३ ॥। तब बनारसी और भयोौ । स्यादवाद परिनति परिनयौ ॥। पाडे रूपचंद गुर पास । सुन्यौ ग्रंथ मन भयौ हुलास ॥। ६३४ ।। १ झद्ध कथानक पृष्ठ ६७-६८




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