पौराणिक उपाख्यान | Pauranik Upakhyan

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Pauranik Upakhyan by चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दयालु मिथिलेश का उपाख्यान । & समिधिलेश--कघ स्पृह्ो करिष्यन्ति मा-मम्पर्केषु मानवा। । यदि मत्स च्नरिघ वेपामुत्रर्षों नोपजांयते ॥१॥ तस्मादु यत्‌ सुकृतं किश्िन्ममास्ति चिद्शाधिप । तन मुच्यन्तु नरकातु पापिनो यतना गताः ॥ देवेन्द्र ! यदि सेरी सल्चिधि से इनका कुछ उत्कष न होगा, तो फिर लोगों का मेरे सम्पकं की इच्छा क्यों होगी ? अतएव मेरा जो कुछ खुकुत है, उसके फल से ये सब दुः्खित पापी नरक से छुर जीय । जयजय कार से झाकाश गूज्ज उठा । पुष्पवृध्रि होने लगी । महाराज के पुण्य से नारकी जीवों का स्वर्गवास होगया | वह स्थान जो कुछ देर पहले डराचना जान पड़ता था, पक मनाहर स्थान वन गया | शिक्षा । पाठक ! इस समय हमारे पौराणिक दल में कितने ऐसे परुप हैं । जिनका हृदय झात्तें परिचाण के लिये व्याकल हो ? इस समय भारतवरप ही में सदस्तरी झानाथ, सहस्त्री डःखित प्राण परित्याग करते हूं दौर ऐसे कितने दयालु हैं जो उनका सहायता पं चाना ते एक घोर रहा उनकी एक चार भी चिन्ता करता हो ' इन उपाख्यानों के पढ़ने एवं सुनने का फल यटी है कि लोग महाराज मिथिलेश को तरदद दोन टा.खियें के ठटःखी देख श्पने सुख को तिलाज्जलि दे । घन्य वेहो लोग है' जो इसरो के लिये घपनी श्ात्मा को कष्ट देते हे घोर इसरे के दख को झपना जेसा दटः्ख समसते है ।




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