स्त्रियों की स्थिति | Stiriyo Ki Sthiti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
189
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारत में ख्री-जाति का भूत, बतमान तथा भविष्यत्ू ११
हो चुका था। इस अधघःपतन के युग के मारम्भ में ही सी की
स्थिति काफी चदल चुकी थी । स्त्री को न छाय यैसी स्वतंत्रता
थी और न पहले-से अधिकार । पुरुप ने स्त्री को शारीरिक
तथा धार्मिक दृष्टि से '्पने ऊपर आाश्रित पाकर उसके कई.
'अधिकारों को छीन लिया था। ख्री की कमजोरी पुरुप के
उच्छुद्धल होने का साधन बन गई थी। जब कोई जाति किसी
'आाद्श से एक बार गिर जाती है, तो वह गिरती ही जाती
है। शक्ति का लोभ और '्मधथिक बढ़ता गया, और यहाँ तक
बढ़ा कि एक समय श्माया, जब कि ख्रीं के ऊपर पुरुप का
पूरा 'मधथिकार हो गया । उसकी स्वतंत्र विचार-शक्ति, उसका
व्यक्तित्व सब कुछ लोप दो गया । उसके लिये पुरुप ने नए.
'झादर्श तथा नई गर्यादाओं का निर्माण किया, जिनसे खी की
सामाजिक तथा पास्विश्कि दशा बहुत खराब हो गई । स्त्री की
स्थिति मध्यचुग के पूर्वाद्ध में जो छुछ रही, उसका मतिविंथर
सतुस्थति ( £1२-३ ) में स्पष्ट दिय्शाई पड़ता दे । वहाँ लिखा है--
*' इस्पतंयार सियः कार्याः घुरुपेः स्वैदिवानिशस् ;
पिपयेषु व सझन्स्य: संस्थाप्या। शात्मनोवशे ।
पिता रघति कौमारे भर्ती रघति यौपने ; गा
रघन्ति स्थयिरे पुबा न खत्री स्यतंत््यमति ।'”
* खियों को परतंत्र रखना चाहिए । पुरुपों का कर्तव्य है
कि स्यियों को रात-दिन 'अपने चश में रक््सें । छुमार अवस्था में
स्त्री की पिता रक्षा फरता है, युवावस्था सें पति, शुद्धावस्था में पुन
स्त्री कमी स्वतंत्र रदने योग्य नहीं 177 दे
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