समदर्शी आचार्य हरिभद्र | Samadarshi Acharya Haribhadra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं सुखलालजी संघवी - Pt. Sukhlalji Sanghvi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन की रूपरेखा [भर
उनकी श्रोर चिद्वादु उत्तरोत्तर श्रधिकाधिक श्रार्क्षित होते जा रहे है। ऐसी स्थिति में
सुकते विचार आया कि हुरिभद्र के दर्शन एवं योग-विषयक ग्रत्थो में ऐसी कौन-कौनसी
विशेपताएँ है जिनकी श्रोर श्रश्यासियो का लक्ष्य विशेष जाना चाहिए ? इस विचार
से मैने इस व्याख्यानमाला मे श्राचार्य हरिभद्र के विषय में विचार करना पसन्द
किया है श्रौर वह भी उनकी कतिपय विदिष्ट कृतियो को लेकर । वे कृतियाँ भी ऐसी
होनी चाहिए जो समग्र भारतीय दर्शन एवं योग-परम्परा के साथ संकलित हो । जिन
कृतियो को लेकर मै इन व्याख्यानो मे चर्चा करना चाहता हू उनकी श्रसाघारणता
क्या है, यह तो शभ्रागे की चर्चा से स्पष्ट हो जायगा ।
मेने पाँचों व्याख्यान नीचे के क्रम मे देने का सोचा है--
(१) पहले में श्राचार्य हरिभद्र के जीवन की रूपरेखा ।
(२) दूसरे में दर्शन एवं योग के सम्भावित उद्धवस्थान, उनका प्रसार, गुजरात
के साथ उनका सम्बन्ध श्रौर उनके विकास में श्राचार्य हरिभद्र का स्थान ।
(३) तीसरे मे दार्गतिक परम्परा मे श्राचार्य हरिभद्र के नवीन प्रदान पर
विचार ।
(४-४) चौथे श्र पाँचवे में योग-परम्परा में आचार्य हरिभद्र के श्रपण का
सविस्तार निरूपणण ।
श्राचार्य हरिभद्र के जीवन एवं कार्य का सुचक तथा उनका वर्णन करने वाला
साहित्य लगभग उनके समय से ही लिखा जाता रहा है श्रौर उसमे उत्तरोत्तर श्रभि-
वृद्धि भी होती रही है । प्राकृत, सस्कृत, गुजराती, हिन्दी, जर्मन श्रौर श्रग्रेजी श्रादि
भाषाश्रो में भ्रनेक विद्वान श्रौर लेखको ने उनके जीवन एव कार्य की चर्चा विस्तार से
की है । वैसे साहित्य की एक सूचि श्रन्त मे एक परिकिष्ट के रूप मे देनी योग्य होगी । *
यहाँ तो इस साहित्य के श्राधार पर प्रस्तुत प्रसंग के साथ खास झ्रावस्यक प्रतीत
होनेवाली बातो के विपय मे ही चर्चा की जायगी । विशेष जिज्ञासु परिशिष्ट मे उल्लि-
खित ग्रन्थ श्रादि को देखकर श्रधघिक श्राकलन कर सकते है ।
जन्म-स्थान
श्राचार्य हरिभद्र के जीवन के विषय मे जानकारी देने वाले ग्रन्थो में सबसे
श्रघिक प्राचीन समभ्ा जानेवाला ग्रन्थ भद्रेश्वर की; श्रबतक श्रमुद्रित, 'कहावली” नाम
की प्राकृत कृति है । इसका रचना-समय निश्चित नही है, परन्तु इतिहासज्ञ विचारक
€ देखो पुस्तक के अन्त मे परिशिष्ट १
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