समदर्शी आचार्य हरिभद्र | Samadarshi Acharya Haribhadra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Samadarshi Acharya Haribhadra by पं सुखलालजी संघवी - Pt. Sukhlalji Sanghvi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं सुखलालजी संघवी - Pt. Sukhlalji Sanghvi

Add Infomation AboutPt. Sukhlalji Sanghvi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जीवन की रूपरेखा [भर उनकी श्रोर चिद्वादु उत्तरोत्तर श्रधिकाधिक श्रार्क्षित होते जा रहे है। ऐसी स्थिति में सुकते विचार आया कि हुरिभद्र के दर्शन एवं योग-विषयक ग्रत्थो में ऐसी कौन-कौनसी विशेपताएँ है जिनकी श्रोर श्रश्यासियो का लक्ष्य विशेष जाना चाहिए ? इस विचार से मैने इस व्याख्यानमाला मे श्राचार्य हरिभद्र के विषय में विचार करना पसन्द किया है श्रौर वह भी उनकी कतिपय विदिष्ट कृतियो को लेकर । वे कृतियाँ भी ऐसी होनी चाहिए जो समग्र भारतीय दर्शन एवं योग-परम्परा के साथ संकलित हो । जिन कृतियो को लेकर मै इन व्याख्यानो मे चर्चा करना चाहता हू उनकी श्रसाघारणता क्या है, यह तो शभ्रागे की चर्चा से स्पष्ट हो जायगा । मेने पाँचों व्याख्यान नीचे के क्रम मे देने का सोचा है-- (१) पहले में श्राचार्य हरिभद्र के जीवन की रूपरेखा । (२) दूसरे में दर्शन एवं योग के सम्भावित उद्धवस्थान, उनका प्रसार, गुजरात के साथ उनका सम्बन्ध श्रौर उनके विकास में श्राचार्य हरिभद्र का स्थान । (३) तीसरे मे दार्गतिक परम्परा मे श्राचार्य हरिभद्र के नवीन प्रदान पर विचार । (४-४) चौथे श्र पाँचवे में योग-परम्परा में आचार्य हरिभद्र के श्रपण का सविस्तार निरूपणण । श्राचार्य हरिभद्र के जीवन एवं कार्य का सुचक तथा उनका वर्णन करने वाला साहित्य लगभग उनके समय से ही लिखा जाता रहा है श्रौर उसमे उत्तरोत्तर श्रभि- वृद्धि भी होती रही है । प्राकृत, सस्कृत, गुजराती, हिन्दी, जर्मन श्रौर श्रग्रेजी श्रादि भाषाश्रो में भ्रनेक विद्वान श्रौर लेखको ने उनके जीवन एव कार्य की चर्चा विस्तार से की है । वैसे साहित्य की एक सूचि श्रन्त मे एक परिकिष्ट के रूप मे देनी योग्य होगी । * यहाँ तो इस साहित्य के श्राधार पर प्रस्तुत प्रसंग के साथ खास झ्रावस्यक प्रतीत होनेवाली बातो के विपय मे ही चर्चा की जायगी । विशेष जिज्ञासु परिशिष्ट मे उल्लि- खित ग्रन्थ श्रादि को देखकर श्रधघिक श्राकलन कर सकते है । जन्म-स्थान श्राचार्य हरिभद्र के जीवन के विषय मे जानकारी देने वाले ग्रन्थो में सबसे श्रघिक प्राचीन समभ्ा जानेवाला ग्रन्थ भद्रेश्वर की; श्रबतक श्रमुद्रित, 'कहावली” नाम की प्राकृत कृति है । इसका रचना-समय निश्चित नही है, परन्तु इतिहासज्ञ विचारक € देखो पुस्तक के अन्त मे परिशिष्ट १




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now