प्रार्थना प्रबोध | Prathana Prabodh

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Prathana Prabodh by शोभाचन्द्र भारिल्ल - Shobhachandra Bharill

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राथना की महिमा जो लोग परमात्मा की प्राथना मे श्रद्धा रखते हैं और जो प्राथना की शक्ति को स्त्रीकार करते है, उनके लिए प्रार्थना एक अपूव वस्तु हैं। उम पर यदि विश्वास रखा जाय तो उससे पूव वस्तु की प्राप्ति होती है । यदि प्रार्थना मे विश्वास न हुझा तो वही एक प्रकार का ढोंग बन जाती है । उससे फिर अपूर्व वस्तु की प्राप्ति होना संभव नहीं है । कल्पत्रक्त मे कौन-सी वस्तु नहीं रही हुई है ? उसमे रहती तो सभी वस्तुएं हैं पर नज़र एक भी नहीं श्राती । फिर भी कल्पवृक्त के नीचे बैठकर जिस वस्तु की कल्पना की जाती है, वही बस्तनु मिल जाती है । इस प्रकार कल्प- चूत्त स्वयं कल्पना (चित्ता) के आधार से वस्तु प्रदान करता ह। यदि कल्पना से की जाय तो उस वस्तु की प्रापि नहीं हो सकती । इसी प्रकार परमात्मा की प्राथना में निश्चित शक्ति भले ही दृष्टरियोचर न हो, पर यदि उस पर विश्वास किया जाय तो उस्तस समस्त मनोरथ पूरे हो सकत हैं। यही कारण है. कि ज्ञानीजन परमात्मा की प्राथना के सामने कल्पवृक्त या चिन्ता- मशि रत्न की भी परवाह नहीं करते । उनकी दृष्टि में परमास्मा की प्राथना के सुकाबिले उसकी भी कीमत नहीं है । जब हमारे भीतर परमात्मा की प्राथना पर ऐसा प्रगाढ़ विश्वास पैदा हो जाएगा श्रौर प्राथना के सामने कल्पवृ्त और चिन्तामशि भी तुच्छ प्रतीत होने लगेगे, तब हमे रपष्ट मालूम हो जायगा कि परमात्मा की प्राथना में कैसी अद्भुत शक्ति विद्यमान है । अत:




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