ग्रेट ब्रिटेन की शासन - पद्धति | Great Briten Ki Shasan - Paddhati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.85 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ ग्रेट ब्रिटेन की शासन-पद्धति न है। रेम्जे स्योर का कथन है कि यदि शक्ति का पृथवकरण ही अमेरिकन संविधान का मुख्य संविधान है तो उत्तरदासित्वों का केन्द्रीयकरण ब्रिटिश संविधान की विशेषता है। संसद संविधान में परिवर्तन कर सकती है । किसी भी सुतन विधि का सूजन वह कर सकती है । कोई भी उसको रोक नहीं सकता है क्योंकि इंगलेंड में संसदीय सरकार है । संसद में उस दल का मन्त्रिमएडल बनता है जिसका बहुमत होता है। तब तक कार्यरत रह सकता है जब तक कि सदन का विश्वास उचे प्राप्त रहता है । यदि अविश्वास का प्रस्ताव पारित हो जाता है तो प्रधान मन्त्र या तो संसद का विघटन करवा देता है अथवा मन्त्रिमरडल से त्यागपत्र दे देता है। इसीलिये सभी मन्त्री संसद के प्रति उत्तरदायी रहते हैं । वस्तुत इंगलेंड की सरकार में सर्वाधिक सत्तावान तथा शक्ति सम्पन्न संसद ही है । इसी की सशक्त संसद का अनुझूमन पूर्ण विश्व ने किया है । ७ अवरोध तथा सन्तुलन--ब्रिदिश संविधान में अवरोध तथा सन्तुलन का भी महत्वपूर्ण स्थान है। एक ही शक्ति का विरोध दूसरे से होता है । जैसे संसद के दोनों सदन विधियों को पारित करते हैं । सम्ाट उन पर भुपने हस्ताक्षर करके उनको कानून का रूप देता है परन्तु सम्नाट के हस्ताक्षर बिना संसद द्वारा पारित किसी भी विधि को कानून का रूप नहीं प्राप्त हो सकता हैं। इसी प्रकार संम्नाट का कोई भी आदेश या कानुन तब तक प्रमाणित नहीं होता जब तक कि संसद की स्वीकृति उस पर नहीं मिल जाती है । इसीलिए विद्वानों का मत है कि इंगलेंड के संविधान में निरोध तथा संतुलन का सिद्धान्त पुणादया श्रविष्ठित है । निरोध संतुलन का सिद्धान्त प्रत्येक क्षेत्र में लागु होता है । बहुमत श्राप्त मन्त्रिमणडल के विरुद्ध यदि अविश्वास का प्रस्ताव पारित किया जा सकता है तो प्रधान मन्त्र संसद का विघटन करा सकता है। इसी प्रकार न्यायाधीशों की नियुक्ति मन्त्रि- परिषद् द्वारा होती है परन्तु एक बार नियुक्त हो जाने पर परिषद द्वारा पुन वे न्यायाधीश पदच्युत नहीं किये जा सकते हैं । ८ विधि-राज्य--इंगलेंड के संविधान में राज्य का विशिष्ट स्थान है । कोई भी व्यक्ति कानुव से परे नहीं है । सभी को समान अधिकार सुरक्षा तथा स्वतंत्रता उपलब्ध है । किसी भी व्यक्ति को जाति पद प्रतिष्ठा के आधार पर वैधानिक दंड- विधान से युक्ति नहीं मिल सकती है । सभी के साथ समान न्याय करने का ही है । यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि नागरिकों के अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख था विवरण कहीं नहीं मिलता है । भारत तथा अमेरिकन जैसे लिखित संविधायों में नागरिकों के मुलाधिकारों का प्रकट उल्लेख मिल जाता है किन्तु इंगलेंड के नागरिकों
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