शासन मुक्त की ओर | Shasan Mukt Ki Or

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shasan Mukat Ki Aur by विश्वनाथ भार्गव - vishavnath bhargav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विश्वनाथ भार्गव - vishavnath bhargav

Add Infomation Aboutvishavnath bhargav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
= १ छ जिन्दा रहने के लिए. अत्र पूर्ण रूप से कारखाने वा पूँजीपति का भरोसा करना पडा ¡ आर्थिक जिन्दगी पर कब्जा करने के कारण इन पूँजीपतियो ने सभावतः राजदंड पर भी अपना कब्जा जमा लिया | नतीजा यह हुआ कि एक ही हाथ में इंड-शक्ति और उत्पादन-शक्ति दोनो होने के कारण वे जनता का अधिक शोषण करने लगे। यह शोपण सिफ आत्मा तक ही मयांदित न होकर शरीर का भी होने लगा, क्योंकि अपनी स्वतत्रता से उत्पादन न कर सकने के कारण उत्पादक श्रमिकों को अपना श्रम कारखानेदारों के हाथ में वेचने पर मजबूर होना पडा। श्रमिकों की मजबूरी से पूँजीपति उसका नाजायज फायदा भी उठाने लगे। इन तरह पूँजीवाटी लोकतत्र मं जनता की हालत राजतत्र से भी अधिक खरार हो गयी, क्योकि राजतन में जह जनता वी आत्मा ही कुठित होती थी, वहाँ लोक्तत्र में जनता के शरीर और आत्मा, दोनो का शोपण होने लगा, सो भी पहले से अधिक पैमाने पर ! इससे भी ऊच- कर मनुष्य ने वाद मे जो क्राति की, उससे उसकी आत्मा और अधिक कुथित हो गयी । पहले जिस तरह राजाओं को हयकर राजदड को पार्लिया- मेट के हाथ में डाल दिया, उसी तरह अब केवल राजदड ही नहीं, बल्कि उत्पादन-यत्र भी उसीकरे हाथ म सौप विया, जिते तथ मे राजटड था | जवर दमन तथा उत्यादन > साधन एक दी गुट केदाथसे श्रा गवे, অল उसके लिए जनता का पूणं रूप से निटंलन करना आसान हो गया | टड का दवाव जनता पर्‌ श्रौर अधिक हो गया | दवा से मजे बढ़ा कहावत है, धमजं चढ्ता दी गया, ज्योज्यो व्वा की} मनुप्व উ্-উ ्माजादी की चेष्ठा क्ता गया, वैसे.वैते उक गलते मे शासन का फा वदता गया। कारण यह है ङि यच्रपि मनुष्व ने इस প্রা में बड़ी-बडी क्रातियों कीं, भीपण आत्म-जलिदान भी किया, लेकिन उसने एक बुनियादी भूल की । उसने यह नहीं समझा कि उत्तके २




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now