विज्ञान | Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 उसको श्रद्धतालयके अतिरिक्त एक कोड़ी में भी. . काई मोल न लेगा | इतना सुधार हानेपर भी पडिसनकी कट्पना बहुत दूर दौड़ती है। उनके मताजुसार फोनाग्राफ़ अति उत्तम वादित्रका स्थान ग्रहण करने लायक हेगा श्रौर करेगा । झा- 'ुनिक यंत्रौमें मशीनकी घड़ घड़ाहट और कई श्न्य ग्रकारके सुर मिले रहते हैं । उन सबको में दूर कर खकूगा, यह उनका विश्वास है । इतना ही नहीं; ब्रह यह भी कहते हैं कि में पसला करना चाहता हूँ कि काई भी गीत गवैय्येके कराठसे उतना मधुर न लगे, जितना कि मेरे यंत्रमं भरकर, खुननेसे लगे । इसका कारण यह है कि प्रत्येक गवैय्येके गानेमें उसके ऊँचे स्वरके साथ साथ नाना प्रकार के घीमे सर भी उत्पन्न होते हैं । वे इतने धीरे और सूदम होते हैं कि साधारण श्रोता उनको पूर्णतया ग्रहण नहीं कर सकते श्रीर जितने अंशमें बे ध्वनियां (सर) नहीं सुनाई देतीं उतने ही झ्ंशम संगीतकी मघुरताका नाश होता है# । लेकिन मेरे यंत्रमें गवेय्येकी सब '्वनियां ज्यौकी त्यो भर दी -जायंगी श्रार जब उसके बजाया जायगा ते उतना ही झानन्द श्रायेगा, जितना गवैय्येको पाससे खननेमें श्रायेगा । _ ब्रामाफ़ोनसे अधिक रोचक श्र लोकप्रिय यंत्र जिसका हालमें ही श्राविष्कार डुआा हें खिनामेटरोग्राफ है, जा जीते जागते, चलते फिरते चित्र दिखानेवाले यंत्र या बायसकापके नामसे प्रसिद्ध है । इस झाविष्कारकोा पूर्णतः व्यवहारिक बनानेका. यश भी एडिसनको ही प्राप्त हे। ये तसवीर झाजकल कितनी झाकषंक श्रार उपयेगी हें गई. हैं--यह बात किसी शिक्षित मनुष्यसे छिपी नहीं हे । लेकिन इन्हें देख कर बहुतांके दिलमें : “. मिन्त शित्र बाजां और मनुष्येंकि उसी स्वरके उत्पन्न करने- पर भी कुछ न कुछ भेद रहता ही है, इसी भेदके कारण बाजों और 'मनुष्याकी श्रावाज़ स्पष्ट पहचान ली जाती है। यह भेद उपरोक्त ध्वनियेंकि कारण हो होता है। गानेकी मघुरता इन्हीं पर निभर है ।--सें.. ं _ थिज्ञान . [ साग ७ यह ख्याल पेदा हुआ होगा कि ये चित्र हिलने डालनेके साथ बालते हंसते झार गाते होते ता बेर भी अच्छा होता | कि _. पडिसनने जब सिनेमाका.. ( (ंएएछाए9 ) शोध किया, तबसे ही उनका विचार ग्रांमाफ़ोन ओर सिनेमाका किसी तरह जोड़ देनेका था। कुछ समय यानी चार पांच वष॑के प्रयोगोके बाद यह काम भी एडिसनने पूर।. कर डाला है । झब जे कायनेटोफोन (८0००]10006) तय्यार हुए हैं, उनमें सिनेमा श्रार ग्रामाफ़ोन ऐसी तरह जोड़े गये हैं कि चित्रके साथ ध्वनि भी मुद्रित होती है झ्ौर फिर उचित समयपर उत्पन्न भी को. जा सकती है । इस तरह चलते फिरते चित्रौके साथ साथ बालते हंसते, गाते बजाते, चित्र भी विजश्ञान- ने उत्पन्न किये हैं । यंत्रका नाम दोनेंक्रा संयोग सूचित करता है। की कहते हैं कि एक रातका एऐडीसन उसके | बनानेके विचारमें बेठा था श्रैर जितनी युक्तियां उसके हृद्यमें फुरती थीं उन सबका सचविस्तार बणन व श्राकृति काग़ज़पर खंचता जाता था । इस तरह रातकोा बहुत देर तक बेठकर कई घंटोंमें याजनापत्रौकां एक बड़ा भारी बंडल तथय्यार हे गया । दूसरे दिन उसका मुख्य सहायक उनको से गया । चित्रकारी करने वालौने, यंत्रविद्याचिशार दौने, श्रार विज्ञान शाख्ियेंनि, जा उसके कारखाने- में काम करते थे, सब या जनाझंकी परीक्षा झारम्भ की झार जा उनको काममें श्राने लायक मालुम पड़ी उनपर अधिक प्रयास करने लगे । पडिसन उन येजनाश्रांके प्रयोगॉका बारंबार. देखने झ्रार' घड़ी घड़ी उनकी च्रटियोांका पूरा करनेमें व्यस्त रहने लगे ।इस तरह चार वषमें हज़ारों सुधार, परिवर्तन झार झनुभवोके बाद यह यंत्र तैय्यार हुझा। झब इस यंत्रमं परिवतन कुछ करना पएडिसन- की झावश्यक न जान पड़ता था, परन्तु ता भी उन्होंने अपने मुख्य सदायकके एक प्रश्चके उत्तर में यद्दी अनुमति प्रकट की कि दो चार मास तक




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