पुजारी | Pujari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुजारी श्छ
यह ऐसे ही नहीं भूल जायगी । बह उसे नहीं छोड़ पायेगी | जो श्रसझय भी है चर
असम्यता थी |
इस प्रकार रे के सामने एक प्रश्न आता था चर जाता था । वह
चाहकर भी पुजारी के प्रति उपेक्षा नहीं ले पाई । उसने एकाएक शपने से पूछा--
“कया पुजारी प्रेम की रीत नहीं ! जानता ? फिर वह क्यों छमे प्ूजता है ? बह क्यों
कहता है कि मैं तुम्हें पूजता हूँ ? तुम्हें सदा ही पूजता रहूँगा” श्रौर उसने खिजलाहट-
भरे स्वर में कहा- वह खाक पूजता रहेगा। पुजारी बुद्ध, है। वह जानता
हीनहींप्रेम की सार! वह मुझसे बिवाह नहीं करना चाहता । वह विवाह
नहीं करेंगा ।' ”
उसी समय उसने द्वार पर देखा कि अनिल श्राकर खड़ा हुआ है, वह रेण
की भ्रोर देख कर वही सक गया है । उसे देखते ही रेणु ने कहा---“श्राइए, आइए ।”
सुनते ही श्रनित्त कमरे में आण । वह रेगा के सामने पड़ी कुर्सी पर श्राकर
नेठ गया | दिन में जब वह ्राया था, तो उसके बाद ही बह बड़ी सुगसता से रेणु से
बोल सका था चर घनिष्ठता बढ़ा सका था । अब भी वह कुर्सी पर बैठते ही बोला--
में सोने के लिये जा रहा था कि आपको देख लिया । पर लगता है श्राप किसी विचार
में हैं। तब तो जाऊँ मैं । मैं तो आजकल हूँ ही बेकार । कालेज क्या छूटा, जीवन,
का पहिला रंग-टंग ही खत्म हुआ । आपकी फुवा ने कहा तो, यहाँ बाग है, नदी है,
आपके साथ घूमना है । पर झ्राज तो यहीं पड़ा रहा, दिन-मर खाया श्रौर सोया
किया ' यह कहते अनिल सका | उसने ्रपनी बात कहते-कहते बरस रेण को भी
हैँसा दिया |
अनिल ने हाथ में ली हुई सिगरेट का कश खेँचकर फिर उठते हुए कहा--
“ग्रच्छा, आपका समय न लू तो टीक । मैं चलूँ ।”
सुनते ही, रेणु ने शीघ्रता से कहा--'नहीं, नहीं, अनिल बाबू, श्राप शी ?
अनिल ने कहा--'यह कहाँ की रीति है रेशु ! कि व्यर्थ ही श्रापके बीच,
में आ पड़ा | पर जब श्रापका अझकारण ही श्रतिथि रा बना हूँ, तब, जी कष्ट दूँ,
उसे भूल श्रवश्य जाइयेगा । दिखता है, आप घूमने नहीं जातीं । शायद कहीं भी
नहीं श्राती-जातीं ।'
रेणु ने कहा--'मैं खूब घूमती हूँ। सब जगह आआाती-जाती भी हूँ । कभी घोड़े
पर, कभी पेदल | आप शिकार खेलते हैं ? घोड़े पर चढ़ते हैं ्राप ?”
अनिल ने कहा--'शिकार कभी नहीं खेला । खेलने की इच्छा जरूर रखे
रहा । कभी घोड़े पर नहीं चढ़ा |' .
रेणु ने कहा-हो अब आप उस इच्छा को अवश्य पूरी कीजिये न
User Reviews
No Reviews | Add Yours...