पुजारी | Pujari

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Pujari by श्री राम शर्मा - Shri Ram Sharma

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुजारी श्छ यह ऐसे ही नहीं भूल जायगी । बह उसे नहीं छोड़ पायेगी | जो श्रसझय भी है चर असम्यता थी | इस प्रकार रे के सामने एक प्रश्न आता था चर जाता था । वह चाहकर भी पुजारी के प्रति उपेक्षा नहीं ले पाई । उसने एकाएक शपने से पूछा-- “कया पुजारी प्रेम की रीत नहीं ! जानता ? फिर वह क्यों छमे प्ूजता है ? बह क्यों कहता है कि मैं तुम्हें पूजता हूँ ? तुम्हें सदा ही पूजता रहूँगा” श्रौर उसने खिजलाहट- भरे स्वर में कहा- वह खाक पूजता रहेगा। पुजारी बुद्ध, है। वह जानता हीनहींप्रेम की सार! वह मुझसे बिवाह नहीं करना चाहता । वह विवाह नहीं करेंगा ।' ” उसी समय उसने द्वार पर देखा कि अनिल श्राकर खड़ा हुआ है, वह रेण की भ्रोर देख कर वही सक गया है । उसे देखते ही रेणु ने कहा---“श्राइए, आइए ।” सुनते ही श्रनित्त कमरे में आण । वह रेगा के सामने पड़ी कुर्सी पर श्राकर नेठ गया | दिन में जब वह ्राया था, तो उसके बाद ही बह बड़ी सुगसता से रेणु से बोल सका था चर घनिष्ठता बढ़ा सका था । अब भी वह कुर्सी पर बैठते ही बोला-- में सोने के लिये जा रहा था कि आपको देख लिया । पर लगता है श्राप किसी विचार में हैं। तब तो जाऊँ मैं । मैं तो आजकल हूँ ही बेकार । कालेज क्या छूटा, जीवन, का पहिला रंग-टंग ही खत्म हुआ । आपकी फुवा ने कहा तो, यहाँ बाग है, नदी है, आपके साथ घूमना है । पर झ्राज तो यहीं पड़ा रहा, दिन-मर खाया श्रौर सोया किया ' यह कहते अनिल सका | उसने ्रपनी बात कहते-कहते बरस रेण को भी हैँसा दिया | अनिल ने हाथ में ली हुई सिगरेट का कश खेँचकर फिर उठते हुए कहा-- “ग्रच्छा, आपका समय न लू तो टीक । मैं चलूँ ।” सुनते ही, रेणु ने शीघ्रता से कहा--'नहीं, नहीं, अनिल बाबू, श्राप शी ? अनिल ने कहा--'यह कहाँ की रीति है रेशु ! कि व्यर्थ ही श्रापके बीच, में आ पड़ा | पर जब श्रापका अझकारण ही श्रतिथि रा बना हूँ, तब, जी कष्ट दूँ, उसे भूल श्रवश्य जाइयेगा । दिखता है, आप घूमने नहीं जातीं । शायद कहीं भी नहीं श्राती-जातीं ।' रेणु ने कहा--'मैं खूब घूमती हूँ। सब जगह आआाती-जाती भी हूँ । कभी घोड़े पर, कभी पेदल | आप शिकार खेलते हैं ? घोड़े पर चढ़ते हैं ्राप ?” अनिल ने कहा--'शिकार कभी नहीं खेला । खेलने की इच्छा जरूर रखे रहा । कभी घोड़े पर नहीं चढ़ा |' . रेणु ने कहा-हो अब आप उस इच्छा को अवश्य पूरी कीजिये न




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