भारत की आध्यात्मिक कथाएं | Bharat Ki Aadhyatmik Kathayan

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नरेन्द्र मोहन - Narendra Mohan

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श्री चमनलाल - Shri Chamanlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सीता की अश्निरोक्षा 9 जाए। परन्तु विभीयण ने उनके पति द्वारा श्रमिव्यक्त इच्छा नी विनम्रतापूवन याद दिलाई भौर सीता ने तत्वाल राजसी वेशभूपा पहनना स्वीवार वर लिया। सचमुच, राजकुमारियों व जीवन पथ बहुत कठिन होता है 1 एक-एव पग उठाती हुई, अपने [हृदय के झावेग को थामें, सीता अपने पत्ति के पास जाने के लिए भागे वढ रही थी । 'रानी तैयार होकर उस पालकी मे बठी जिस पर लाल श्रौर तुनहरी झातरें लटव रही थी। इस पालकी मे वैठवर उन्हें राम के पास पहुचना था। श्रांगे श्रागें चल रहे विभीपण को उनके झागमत की धघापणा करनी थी । मगर के प्रवेश द्वार पर यह प्रायना की गई कि वे पालवी से उतर कर शिविर ता या रास्ता पैदल तय वरें। सीता इसका श्राशय से समझ सुकी। रास ये दशन करने के विचारों में दे इतना खोई हुई थी कि इन छोटी छोटी घाता पर सोचने की उन्हें फुरसत नहीं थी । सीता पालकी मे भपनी जगह स उठी और चौढे रास्ते पर बाहर श्रा गई । रास्त व दाए झौर बाएं, उहें घरे हुए सनिव खडे थे। सामने राम विराजमान थे-- गम्भीर श्रौर भव्य मुद्रा म, सभासदा के साथ। सभी वी श्राखें सीता पर ठदरी हुई थी। उन्हें वचपत से लेकर श्रव तर खुले श्राम नहीं देखा गया था। विभीषण को स्वभावत महसूस हुमा कि इससे, सकाचशील आर संवेदनशील रानी को उलझन होगी । इसलिए बे भीड को चल जान का श्रादेश देन ही व थे जिससे कि. एकात मे राम श्रौर साता का मिलन हो सके, तभी राम ने उन्हें हाथ के सकेत से राक दिया। उन्हान झादेश दिया “सभी को बैठे रहने दिया जाए । यह ऐसे अवसरा म से एक है जब समस्त प्रह्माप्ड स्त्री के लिए श्रोढनी बन जाता श्रार निष्साप भाव से कोई भी उसे देख सकता है।” इस बीच, सीता धीमी श्रौर राजसी चाल में चलती हुई बदन ग्रमाप झा गयी थी। ऐसा लग रहा था माना उनकी श्राखें श्रपने पति था मुय् वा प्रत्येक भगिमा और गति को भाप रही हा। राम सीता वे स्वागत मे उठे, पर सभी लोगा ने दखा कि वे सीता की शोर नहीं देख रहें, पत्ति' श्रपन सिर को शुकाए हुए झाखो को नीचे किए हुए यह हू। रानी कितनी सुदर्‌ थी। दे रितिनी भय शौर सौम्य दिद रही थी । गाजसा श्राभूषणा से सजी होने पर भी, उहें देखने पर साफ लगता था किये गाय प्ौर बय हृदय वाली सती हू एक विनम्र और प्यारी पस्ती हैं प्रौर टल सर या गुदूस्था दे




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