पंचवटी | Panchwati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पब्च्चवटठी [.. १८. | ताँखों के आगे दरयाली रहती है हर घड़ी यहाँ; जहाँ तहाँ भाड़ी में मिरती है ऋरनों की भड़ी यहाँ । बन की एक एक दहिमकशिका जैसी सरस और झुचि है; क्या सो सो नागरिक जनों की न | रे९ ] मुनियों का सत्सज्ञ यहाँ है जिन्हें हुआ है तत्व-ज्ञान, सुनने को मिलते हैं उनसे नित्य नये अनुपम आख्यान ! . जितने कष्ट-क्टकों में है जिनका जीवन-सुमन खिला; गोरव-गन्ध उन्हें उतना ही अत्र, तत्र, सर्वत्र मिला ॥! श्र




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