पद्मपुराणम् भाग - 1 | Padmapuranam Bhag - 1

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Padmapuranam Bhag - 1   by पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना १ संस्कृत साहित्य सागर-- संस्कृत साहित्य अगाध सागरके समान विशाल है । जिस प्रकार सागरके भीतर अनेक रत्न विद्यमान रहते हैं उसी प्रकार संस्कृत सादित्य-सागरके भीतर भी पुराण, काव्य, न्याय; धम, व्याकरण, नाटक; आयुर्वेद, ज्यौतिष आदि अनेक रत्न विद्यमान हैं । प्राचोन संस्कृतमें ऐसा आपको विपय नहीं मिलेगा जिस पर किसीने कुछ न छिखा हो । अजेन संस्कृत साहित्य तो विशाछतम है ही परन्तु जेन संस्कृत साहित्य भी उसके अन्लुपातमें अल्पपरिमाण होने पर भी उच्चको टिका है । जैन सादित्यकी प्रमुख विशेषता यह है. कि उसमें वस्तु स्वरूपका जो वर्णन किया गया दर हृदयरपर्शी है; वस्तुके तथ्यांशको भतिपादित करनेवाछा है और श्राणिमात्रका कल्याण कारक है.। रामकथा साहित्य-- मयांदा पुरुषोत्तम रामचन्द्र इतने अधिक लोकप्रिय पुरुष हुए हैं कि उनका वर्णन न केवल भारतवर्षके साहित्यमें हुआ है. अपितु भारतबषके बाहर भी सम्मानके साथ उनका निरूपण हुआ है और न केवल जैन सादित्यमें दी उनका बणन आता है किन्तु वेदिक और बौद्ध साहित्यमें भी साब्जोपाज्ञ वर्णन आता है । संस्कृत-प्राकृत-अपभध्रंश भादि प्राचीन भाषाओं एवं भारतकी प्रान्तीय विभिन्न भाषाओंमें इसके ऊपर उच्चकोटिके श्रन्थ लिखे गये हैं। न केवल पुराण अपितु काव्य-मद्दाकाव्य और नाटक-उपनाटक आदि भी इसके ऊपर अच्छी संख्यामें लिखे गये हैं । जिस किसी लेखकने रामकथाका आश्रय छिया है. उसके नीरस वचनोंमें भी राम- कथाने जान डाल दी है । इसका उदाददरण भट्रि काव्य विद्यमान है. । रामकथा की विभिन्‍न धाराएँ-- हिन्दू बौद्ध और जेन--इन तीनों ही धर्मावछम्बियों में यह कथा अपने-अपने ढंगसे लिखी गई है और तीनों ही धर्मावलम्बी रामको भपना आदरशें-महापुरुष मानते हैं । अभी तक अधि- कांश विद्वानोंका मत यह है कि रामकथाका सबेप्रथम आधार वाल्मीकि रामायण है । उसके बाद यह कथा महाभारत, ज्रह्मपुराण, पढ्मपुराण, अग्निपुराण, वायुपुराण आदि सभी पुराणोंमें थोड़े बहुत हेर-फेरके साथ संक्षेपमें छिपिबद्ध की गई है। इसके सिवाय अध्यात्म रामायण, आनन्द रामायण, अद्भुतरामायण नामसे भी कई रामायण भ्रन्थ लिखे गये । इन्हींके आधारपर तिब्बती तथा खोतानी रामायण; हिन्देशियाकी प्राचीनतम रचना रामायण काकाबिन”, जावाका आधुनिक 'सेर त राम' तथा दिन्दचीन,; श्याम; न्रह्मदेश एवं सिंदढ आदि देशोंकी राम कथाएं भी लिखी गई हैं । वाल्मीकि रामायणकी रामकथा सबंत्र प्रसिद्ध है। इसलिए उसे अंकित करना अनुपयुक्त है । हाँ; अदुभ्रुत रामायणमें सीताको उत्पत्तिको जो कथा लिखी है वह निराछी है अतः उसे यहाँ दे रहा हूँ । उसमें लिखा है कि दण्डकार ण्यमें गृत्समद नामके एक ऋषि थे । - उनकी ख्रीने उनसे प्राथेना की कि हमारे ग्भसे साक्षात्‌ उकमी उत्पन्न दो । ख्त्री की प्राथना सुनकर ऋषि प्रतिदिन एक घड़ेमें दूघको आमन्त्रित कर रखने ढगे । इसी समय वहाँ एक दिन रावण आ पहुँचा, उसने ऋषिपर विजय प्राप्त करनेके छिए उनके शरीरपर अपने वाणोंकी नींके चुभा-चुभाकर शरीरका बूद-बूंद रक्त निकाला और उसी धघढ़ेमें भर दिया । रावण, उस घड़ेको साथ ही ले गया और ले जाकर उसने मन्दोद्रीको यह जताकर दे दिया कि “यह रक्त विषसे भी तोश्र है ।” कुछ समय बाद मन्दोद्रीको यद्द अनुभव हुआ कि हमारा पति मुकपर सच्चा प्रेम नद्दीं करता है इसलिए जीवनसे निराश दो उसने बह रक्त पी लियो । परन्तु उसके योगसे वह्द मरी तो नहीं किन्तु गभवती हो गई । पतिकी अनुपस्थितिमें गर्भधारण हो जानेसे मन्दोदरी




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