प्राचीन भारत का राजनीतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास | Prachin Bharat Ka Rajniti Tatha Sanskritik Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.54 MB
कुल पष्ठ :
277
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ प्राचीन भारत का रजनीतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास
प्रथम दो गुप्त-मरेश-शोगुप्त और ओजटोल्कय
सामम्त महत्त्व की बात है कि गुप्त-झमिलेख जहाँ प्रथम दो
मरेशों--श्रीगुप्त भौर श्रीषटोत्कच--के लिये एकमात्र “महाराज” की उपाधि का
प्रयोग करते हैं, वहाँ तीसरे नरेश श्रीचन्दरगुप्त-प्रथम के लिये 'महाराजाधिराज'
की उपाधि का। यह सत्य है कि 'महाराज' की उपाधि सर्दव श्रघीनतासूचक सही
होती। इसी काल के वाकाटक-नरेशों ने 'महाराज' की उपाधि धारण की थी,
फिर भी वे स्वतन्त्र शासक थे। परन्तु एक ही झमिलेख में एक राजा के साथ
“महाराज' की उपाधि श्रौर दूसरे के लिये “'महाराजाधिराज' की उपाधि का प्रयीग
स्पष्ट रूप से दोनो के भ्रन्तर की सुचना देता है। भ्न्तर यही हो सकता है कि
“महाराज की उपाधि श्रधीनतासूचक भौर 'महाराजाधिराज' की उपाधि स्वतन्त्रता-
सुचक हो। यह भी महत्त्वपूर्ण बात है कि युप्त-नरेशों ने स्वय भ्रपने अमिलेखों में
प्राय: 'महाराजाधिराज' की उपाधि का प्रयोग श्रपने को सुचित करने के
लिये किया है भ्रौर 'महाराज' की उपाधि का प्रयोग श्रपने सामन्तों के
को सूचित करने के लिये। इस पृष्ठभूमि पर यही प्रतीत होता है कि प्रथम दो
गुप्त-नरेश--गुप्त श्रौर घटोत्कच--सामन्त शासक थे श्रौर तृतीय गुप्त-नरेश
चन्द्रगुप्त-प्रथम स्वतन्त्र शासक था।
यह निदिचत रुप से नहीं कहा जा सकता कि गुप्त श्रौर घटोत्कच किसकी
में शासन करते थे--
(१) डॉ० दर का मत था कि ये दोनों कुषाणों के सामन्त थे।
परन्तु झाज इस मत को कोई नही मानता, क्योंकि बुषाणों का श्रस्त गुप्तों
के काफी पुव हो चका था। हे करत
(२) डॉ० जायसवाल का मत है कि कुषाणों का अन्त भारशिवों ने किया
बा वही गुप्तां के भी प्रधिपति थे । परन्तु इस मत का कोई प्रमाण
नही है।
(३) डॉ० प्रमोदचन्द्र बागची ने यह मत प्रतिपादित किया है कि पूर्वी
डे भा
पर तीसरी शताब्दी में का भधिकार था। इसी मत को रा करते दी
कुछ विद्वानों ने रुण्डों को ही गुप्तों का श्षिपति माना है। परन्तु समुद्रगुप्त के
श्रयाग-स्तम्भ-लेख में पूर्वी भारत में कही भी मुरुष्डों का उल्लेख नहीं है।
(४) लिच्छवि-नरेश जयदेव-द्वितीय का नेपाल-श्रभिलेख रे
उसके
सुपुष्प लिच्छवि का उल्लेख करता है जो पाटलिपुव में उत्पन्न हुमा था। थी
पर कुछ विद्वान मगध पर लिच्छवियों का भ्रधि
लिच्छवि गुप्तों के अधिपति थे । कि.
परन्तु इनमें से कोई भी मत निश्चित साक्ष्यों
समस्या भाज भी भ्रनिणोंत है । गानों पर है पल यह
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