तीर्थदर्पण पांडाअर्पण | Tirthdarpan Pandaarpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११५
कि तीर्थों में मनुष्य चहुवा पापाण आदि धातुओं की प्रतिमाओं को
इदवर की मूति समझ कर पूरा करते हैं पर बह भोले भालें यह नहीं
जानते । सि-इंइपर निराकार है-देखिये ! यजुर्वेद अ० ३९1 ४ में
लिया हैं कि परमेश्वर की, जिसका भखण्ड यहा और प्रताप है, मूर्ति
नहीं होती | यथा-न तस्प अतिमा आास्ति यस्प नाम सहद्यदाः 1
पुराणों में भी इंइ्वर॒ को निराकार कहा गया है । यथा:
हस्त पादादि रदिते निशुणं मकते: परम स््> वूहविवचपुराण ॥।
निधिका रो निराकारों निरव्यो हमब्ययः स््ट तत्ववोध |
निगतःसचिदानन्दःल्गरुडपुराण | निराकारें निरन्तरसू-ू
अवछूतगीता । निविकार निरन्जनम् न आ ० रामायण.
अनन्प भक्त जी ने ईश्वर को निराकार माना हैं | यथा---
सर्वे परे अरू सब तरे पुनि सर्व दिये परिपूर रहो है ।
वार न पारअपारसखण्डसों पिण्डन्रह्माण्डसमानकूों हैं ॥
पूरन सबे अनन्य भने पर आवहि दृष्टि न मा्ि गहों है ।
सूर्म रूप झरूप सदाइमि न्र् अरगाचर रूप. कहो है ॥ १ ॥
शादिमनादिजवन्तअ तूपअछेदअमेदसलेखअरखाण्डित ॥
अच्यु्नाथ अचिन्त्यममयपद्ञमदूमुतभूतअभूतछुर्माण्डत |
आनन्द्यूलममुल्यअगाघअनाहदआदितिकोटपचाण्डित ।
ज्ञासुझनन्यभते सुखरूप सो रूपानिरूप चिरूपत्ति पण्डित ॥९ ॥!
निर्मुन सरगुन कौन युनै , यूनुरूप नहीं वह को रूखि आयों ।
एक अनेक घविशेष नहीं , अरुदूर नजीकनहींठिक ठायो ॥!
सनिवेचनिय अनन्यभने , कहते न वने हैं विना ही बनायों ।
यूरन त्रह्म संवै पर पूरन ; पूर्ण से तिन पूर न पायो दे
महात्मा दादूदयाछ् ने भी इंस्वर को निराकार कहा है | यान
अधिनासी सो सत्य 'है, उपज बिनसइ नाहिं । ||
जता कदिये काल मुख, सो साहिब किस माहिं पा
साई” मेरा सत्य है, निरंजन... निराकारना ॥₹॥
दादू_ बिनसइ देवता, झँठा सब , साकारीया 1
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