तीर्थदर्पण पांडाअर्पण | Tirthdarpan Pandaarpan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११५ कि तीर्थों में मनुष्य चहुवा पापाण आदि धातुओं की प्रतिमाओं को इदवर की मूति समझ कर पूरा करते हैं पर बह भोले भालें यह नहीं जानते । सि-इंइपर निराकार है-देखिये ! यजुर्वेद अ० ३९1 ४ में लिया हैं कि परमेश्वर की, जिसका भखण्ड यहा और प्रताप है, मूर्ति नहीं होती | यथा-न तस्प अतिमा आास्ति यस्प नाम सहद्यदाः 1 पुराणों में भी इंइ्वर॒ को निराकार कहा गया है । यथा: हस्त पादादि रदिते निशुणं मकते: परम स्‍्> वूहविवचपुराण ॥। निधिका रो निराकारों निरव्यो हमब्ययः स्‍्ट तत्ववोध | निगतःसचिदानन्दःल्गरुडपुराण | निराकारें निरन्तरसू-ू अवछूतगीता । निविकार निरन्जनम्‌ न आ ० रामायण. अनन्प भक्त जी ने ईश्वर को निराकार माना हैं | यथा--- सर्वे परे अरू सब तरे पुनि सर्व दिये परिपूर रहो है । वार न पारअपारसखण्डसों पिण्डन्रह्माण्डसमानकूों हैं ॥ पूरन सबे अनन्य भने पर आवहि दृष्टि न मा्ि गहों है । सूर्म रूप झरूप सदाइमि न्र् अरगाचर रूप. कहो है ॥ १ ॥ शादिमनादिजवन्तअ तूपअछेदअमेदसलेखअरखाण्डित ॥ अच्यु्नाथ अचिन्त्यममयपद्ञमदूमुतभूतअभूतछुर्माण्डत | आनन्द्यूलममुल्यअगाघअनाहदआदितिकोटपचाण्डित । ज्ञासुझनन्यभते सुखरूप सो रूपानिरूप चिरूपत्ति पण्डित ॥९ ॥! निर्मुन सरगुन कौन युनै , यूनुरूप नहीं वह को रूखि आयों । एक अनेक घविशेष नहीं , अरुदूर नजीकनहींठिक ठायो ॥! सनिवेचनिय अनन्यभने , कहते न वने हैं विना ही बनायों । यूरन त्रह्म संवै पर पूरन ; पूर्ण से तिन पूर न पायो दे महात्मा दादूदयाछ् ने भी इंस्वर को निराकार कहा है | यान अधिनासी सो सत्य 'है, उपज बिनसइ नाहिं । || जता कदिये काल मुख, सो साहिब किस माहिं पा साई” मेरा सत्य है, निरंजन... निराकारना ॥₹॥ दादू_ बिनसइ देवता, झँठा सब , साकारीया 1




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