श्री रोहिणीव्रत कथा और श्री रोहिणीव्रतोद्यापनम | Shri Rohinivart Katha Aur Shri Rohinivratodyapanam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही पेडिणीडत कथा है की थ्
;पेसशफ लव, रजएएरफिरेसेकेय के पीर तरस:
न
'पुत्रियां थीं । सेदिणीके. इन समस्त पुत्र पुत्रियोंके बाद एक लोकपाछू-
'कुमार नामका आठवां पुत्र हुआ जो रूपसे सुशोनित था।
किसी एक समय अशोक राजा; बुद्धिमती रोहिणी, और लोकपाल
नामक छोटे पुत्रकों गोइमें लिये हुई वसन्ततिलका . नामकी धाय ये
तीनों मददलके अग्रभाग पर मनोडर को लाइछ करते तथा गोष्टीसुखका
उपभोग करते हुए सुखसे बैठे हुए श्रे। उसी समय मा्गंमें कुछ ऐसी
स्त्रियां निकटीं जो छोकसे युक्त थीं, जिनके केशोंके समूद खुल हुए
'थे, जो कोछाहछ कर रहीं थीं, मण्डल बनाकर खड़ी हुई थीं, रास
कर रही थीं, अपने बालकको वारबार पुकारती थी, बश्ःस्थल; दिर;
स्तन और सुजाओंको कूटती हुई रुदन कर रही थीं ।
मदद पर बैठे बैठे रोहिणीने जब इन ख्त्रियोंको देखा तब कौतुक-
चा दसन्तहिढका नामकी धघात्रीसे इस प्रकार पूछा--हे अम्ब : नृत्य
बिद्याके जानकार विद्वान सिग्नटक, रानी, छत्र, रास और दुरविनी इन
पांच नाटकोंका चृय करते हैं परन्तु भरताचायके द्वारा कहे हुए इन
पांचों नाटकोंको छोड़ कर इन ख्रियों द्वारा यद्द कौनसा नाटक
'किया जा रहा है, जो दिर आईिके कूटनेसे सहित है । निषाद,
ऋषभ आदि सात स्त्ररोंते रहित तथा भाषा और स्वरोंक्रे चढ़ा
'उतारसे रहित यड नाटक मुझसे कहिये । मुझे इस समय इस
विषयका कौतृहल हो रहा है।
भोलेयपनसे भरे हुए रोहिणीके वचन सुन कर वसन्तविल्का
'धाय इससे बोली-है पुत्रि ! इन दुःखी जनोंक्रे ह्वारा यह झोक
तथा मड़ान दुःख किया जा रहा हैं । यह सुन रोदिणी केतुक
वद्च उपसे फिर बोली - हे माता ! झोक अथवा दुःख क्या
'कइलाता दै ? मुझसे कद । अबकी वार धघाय कुदध होकर तथा
क्रोधते लाल लाठ आंखें करती हुई बोली-हें सन्दरि ! क्या
तुझे “उन्माद दो गया है; या तेरा ' ऐसा पाण्डियका चैमव है? या
“रूपसे उत्पन्न हुआ घमण्ड है या लोकोत्तर सौभाग्य दै जिससे तू
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