हरिवंशपुराण | Harivanshapuran
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
73 MB
कुल पष्ठ :
1016
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना _ मा
वर्द्धमानपुरकी चारो दिशाओमें जिन राजाओका वंर्णत जिनसेनने किया है, उनपर भी विचार कर
लेता आवश्यक है--
इन्द्रायुध
स्व० ओझाजीने लिखा है कि इन्द्रायुघ॒ और चक्रायुध किस वशचके थे, यह ज्ञात नहीं हुआ
परन्तु संभव हैं कि वे राठोड हो । स्व० चिन्तामणि विनायक वेद्यके, अतुसार इन्द्रायुब भण्डि कुछका था
और उक्त वंशको वर्मवश भी कहते थे ।' इसके पुत्र 'चक्नायुघकों परास्त कर प्रतिहारवंशी राजा वत्सराजके
पुत्र नागमट द्वितीयने जिसका कि ,राज्यकाल विन्सेट स्मिथके अनुसार वि० सं० ८५७--८८२ है । कन्नोजका
साम्राज्य उससे छीना था | वढवाणके उत्तरमें मारवाड़का प्रदेश पढ़ता है । इसका अर्थ यह हुआ कि कन्वौज
से लेकर मारवाड़ तक इन्द्रायुघका राज्य फैला, हुआ था ।
२. श्रीवल्लभ हर
यह दक्षिणके राष्ट्रकूट वंशके राजा कृष्ण ( प्रथम ) का पुत्र था ।' इसका प्रसिद्ध नाम गोविन्द (द्वितीय)
था । कावीमें मिले हुए ताम्रपटमें इसे गोविन्द न लिखकर वल्लभ ही लिखा हैं, अतएव इस विषयमें सन्देह
नहीं रहा कि यह गोविन्द ( द्वितीय ) ही था और'वर्धमानपुरकी दक्षिण दिश्ामें उसीका राज्य था । कावी भी
बढवाणके प्राय. दक्षिणमे है । श० सं० ६९२ ( वि० 'सं० ८२७ ) का उसका एक ताम्रपर्बों भी मिली है ।
रे. अवन्तिभूभ्रतू वत्सराज
यह प्रतिहार वंशका राजा था और उस नागावलोक या नागभट ( द्वितीय ) का पिंता था जिसने
चक्रायुघको परास्त किया था । वत्सराजने गोड़ और बगालके राजाओको जीता था. और उनसे दो श्वेत छत्र
छोन लिये थे । आगे इन्ही छत्रोको रााष्ट्रकूट गोविन्द (- द्वितीय ) या श्रीवल्लभके , छोटे भाई श्र वराजने चढाई
करके उससे छोन लिया था भर उसे मारवाड़की भगम्य रेतीली भूमिकी ओर भागनेको विवश किया था ।
ओझाजीने लिखा है कि उक्त वत्सराजने मालवाके राजापर चढाई की भर मालवराजकों बचानेके
लिए घ्लुवराज उसपर चढ दौडा । ७०५ में तो मालवा वत्सराजके ही अधिकारमें था क्योकि घ्लुवराजका राज्या-
रोहणकाल झा० स० ७०७ के लगभग अनमान किया गया हैं । उसके पहले ७०५ मे तो गोविन्द (द्वितीय)
( श्रोवल्लभ ) ही राजा था और इसलिए उसके बाद ही घ्लुवराजको उक्त चढाई हुई होगी 1
उद्योतन सुरिने अपनी कुवलयमाला जावालिपुर या जालोर ( मारवाड ) में तव समाप्त की थी जव
श० स० ७०० के समाप्त होनेमें एक दिन वाकी था । उस समय वहाँ वत्सराजका राज्य था मर्थात् हरिवंशकी
रचनाके समय ( श० स०' ७०५ में ) तो ( उत्तर दिशाका ) मारवाड इन्द्रायुघके आधीन था गौर ( पूर्वका )
मालवा वत्सराजके अधिकारमें था । परन्तु इसके ५ वर्ष पहले ( ० सं० ७०० ) में वत्सराज मारवाडका
अधिकारी था । इससे अनुमान होता है कि उसने मारवाड़से ही आकर मालवापर अधिकार किया होगा गौर
उसके बाद ध्रूवराजकी चढाई होनेपर वह फिर मारवाडकी ओर भाग गया होगा । झा० स० ७०५ में वह
अवन्ति या मालवाका शासक होगा । अवन्ति बढवाणकी पूर्व दिशामें है ही । परन्तु यह पता नहीं लगता कि
उस समय अवस्तिका राजा कौन था, जिसकी सहायताके लिए राष्ट्रकूट प्रूवराज दौडा था । श्रुवराज ( झ०
स० ७०७ के लगभग गद्दोपर भारूढ हुआ था । इन सब वातोसे हरिवशकी रचनाके समय उत्तरमें इन्द्रायुघ,
१. देखो, सी० पी० बैद्यका “हिन्दू मारतका उत्क्ष * पू० १७७५ ।
२. स० म० शोझाजीके अनुसार नागमटकों समय वि० सं० ८७२-८९० तक है ।
३ इण्डियन ऐण्टिक्वेरी : जिल्द ७, पृ० १४६ । न साय सा
४. एपिग्राफिप्मा इण्डिका * जिद ६, पु० २७९ | .
User Reviews
No Reviews | Add Yours...