महात्मा मार्टिन लूथर का जीवन चरित्र | Mahatma Martin Loothar Ka Jeevan Charitra

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Mahatma Martin Loothar Ka Jeevan Charitra  by लालता प्रसाद - Lalta Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ ............. महात्मा माटिन लूधर निघहदरपर,टजनदपारररह रत, रू ८. दाद... हे मय बा रपट टन गा करता था। परन्तु इंस समाचार को पाते ही उसने फिर वही पुरानी परिपाटी 'तू* द्वारा संबोधन करना घारम्भ किया मानों हँस लुधर ने मार्टिन लूथर को ऐसी मूखंता करते देख उचित समभका कि लूधर का पएम० ए० का प्रमाण पत्र छीन लिया जाय । हँस लूथर का यह क्रोध फिर तबही शांत डुद्ा जब उसने महन्त लुधर को 'खुघारक” लूथर में परिवतिंत पाया । ' उागस्टियन मठ लूथर जिसके मंहन्त इए थे, अपनों प्रथा के झनुलार फकिसी संपत्ति का प्रभु नहीं हो सकता था | इज्लिस्तान में 'मार्टमेन' कायून के श्रनुसार किसी मठ को . स्थावर संपत्ति को झधिकारी होने का झधिकार न था 1 ये महन्त घोर दरिद्रता में झपना जीवन व्यतीत करने का झादशे रखने वाहे थे । लूथर को झभी वर्ष डेढ़ वर्ष तक अपनी दृढ़ता की परीक्षा देना पड़ी । हँस लूथर को दृढ़ आशा थी कि लूथर 'इस परीक्षा से घबड़ा कर लौट झावेगा। लूथर को मठ का नीच से नीच कार्य करना पड़ता था झऔर शहर भर में जाकर भिक्ा मांगनी पड़ती थी । लू्थर भी घोर से घोर तप करने लगा | वह चिराहार रहता,दिन भर प्राथना किया करता, पत्थर की शिलाशँ पर सोता, सदा ब्रपने को पापी स्वीकार करता था बौर झनेक अनेक प्रकार की यंत्र णाझों से श्रपना शरीर * सुखाया करता था । लूथर को इतने. से भी संतोष न इुझ्ा । झब- वह केवल बाल की बीनी कमीच पहिनते शोर घंटों श्रपने शरीर » शरीर श्रात्मोन्‍्नति का बाधक हे रत: शरीर सुखा ढालना श्रात्मो- _ न्नति की प्रथम सीढ़ी है इन विचारों ने माध्यमिक काल के इंसाइयों के चेतरह सता क्खा'्था ।




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