महात्मा मार्टिन लूथर का जीवन चरित्र | Mahatma Martin Luthar Ka Jeevan Charitra

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Mahatma Martin Luthar Ka Jeevan Charitra by लालता प्रसाद - Lalta Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महात्मा मार्टिन लुधर श्झ्‌ 3200०... >> अपना ध्यान दूसरी ओर खींचता पडता है। रोमन कैथालिकों का कथन है कि रसामसीह ने स्वयम अपने पीटर नामक शिष्य फो अपने सब शिषप्यों में श्रेष्ठ माना । पीटर ही में ईसाने धार्मिक विश्वास अधिक पाया पीटर दो में आत्मोज्षित अधिक पाई 1 पीटर सब शिष्यों में श्रेष्ठ था अत पीटर द्वारा स्थापित गिरजा भी सब गिरजों में मुप्य है | ईसा मसीह की मत्योपरान्त पीटर रोम नगर गया और घहा उसने एक गिरज्ञा स्थापित फिया | इस गिरजे की मुल्य महन्ती पीटर स्वयम्‌ २४५ चर्प तक फरता रहदा। ६७ इस्थी में डसे अपन धर्मार्थ प्रांण त्यागने पड़े । पीटर के बाद अन्य महन्त उसके गिरज़े के महन्त द्वोते गुये | इन सब मदन्तों को अपने धार्मिक विश्वास के लिंये बडे वड्टे कष्ट उठाने पडे औरवबहुधा यहां तक नौपत आती था कि पीटर का तरद्द इनकों भी अपन प्रार्णों से द्वाथ धोना पड़ता था | रोमन लोगों के पुराने घर्म ओर ईसाई धर्म क बीच ४०० धर्ष तक घोर युद्ध दाता रदा। इस उर्मन्‍्युद ) में लक्षहों मजुर्षों के व्यर्थ प्राण गये। ईसाई धर्म की जीत हुई और पूर्चीय रोम का सप्नाद्‌ कांस्टेंटाइन स्घयम्‌ ईसाई दोगया। ' यद्दी पदला ईसाई सन्नाद था इसके बाद से ईसाई धर्म राज धर्म दोगया | पीटर के उत्तराधिकारी पोपों न इस धर्म- युद्ध *में बडे २ कप्ट उठाये परन्तु सहिष्णुता घंर्स तथा दया * धर्म युद्ध से हमारा सात्पये वास्तविक युद से नहीं है जैसा ३० वर्ष वाल युद्ध म॑ हुआ था। इमारा सास्पये इतना सा है कि इसाइ लोगों की सण्या बराघर बढ़ती शोर पुराने धर्म के अनुयाय्रियों की संख्या घराबर घटती जाती थो। जिसका बदला ये छोग ईसाइयों को सता कर छेते हैं।




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