कवि प्रसाद की काव्य - साधना | Kavi Prasad Ki Kavya Sadhana

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Kavi Prasad Ki Kavya Sadhana by श्रीरामनाथ सुमन - shriramnath Suman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६] कवि प्रसाद को काब्य-साघन 1 विशेष रंग में प्रगट है । बहुत करके यद्द दोष दी कलाकार कां गुण भी दे श्रौर श्रनेक घाराओं के बीच भी उसकी श्रेष्ठ बौद्धिक स्थिति को प्रकाशित करता है । क्यों कि यह जीवन में एक विशेष प्रवाह --एक घारा होने की सूचना देत। हे । प्रथम प्ररणा काशी के एक प्रतिष्ठित? घनी श्रौर उदार घराने में जयश कर “प्रसाद” का जन्म हुआ या । इनके दादा के समय से ही कबियों, गायकों एवं कलावबिदों का इनके यहाँ प्रायः: नमघट रहता था । दादां इतने उदार थे कि सैकड़ों का दान करना श्रपवाद की अपेदा नित्य का नियम दी श्रघिक बन गया । प्रातःकाल से ही दौन-दुखिों श्रौर विद्याधियों की मोड़ लगनी श्रारम्भ दोजाती | सुबह घर से निकले कि यदद सिज्ञखिला शुरू हो जाता । शौचादि के लिए; चाहर निकलते तो लोटा श्रौर वर तक नहीं बचता | पिता भी कम न थे । हाँ दादा को उदारता के साथ व्यवद्दार-बुद्धि भी उनमें थी । वह भी खूब छुष्ट-पुष्ट' कसरती श्रौर उदार थे । ऐसे ऊुल में जन्म पाकर लड़कपन से करुणा, वैमव और कवि समाज के बातावरण में रहकर धीरे-घीरे साहित्य श्रौर पद्य-रचना की श्रोर इनकी रुचि बढ़ी । संबतू 1६५७ में ग्यारवं वष के श्रारम्म में, श्रपनी माता के साथ इन्होंने घाराच्ष त्र, शो कारेशवर, पुष्कर, उज्जैन, जयपुर, ब्रज, ब््रयोध्या आदि को बात्रा की । घाराकष न की यात्रा में सघन बनपय मर कणटक पव तमाला के बीच, नमंदा को घारा पर इनकी नाव इिलिती डुलती बढ़ रही थी तब प्रकृति की उस सुनप्ान उपत्यका में, विराट की उस गोद में ( जब चांद पृथ्वी पर दूध के मटके लुढ़का रहा या )इनके दृद्य में पहलो बार एक श्रस्पष्ट उद्दे लन का श्नुभव हुआ । संस्कार श्रौर समान की अनुकूलता तो थी दी, इस तया इसके वर्षों बाद की मद्दोदघि, सुवनेश्वर श्रौर पुरी की यात्रा में




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